नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

आजाद पंछी - सुरेन्द्र मोहन पाठक

उपन्यास 12 जून 2019 से 14 जून 2019 के बीच में पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक
प्रकाशक : डेली हंट


आजाद पंछी - सुरेन्द्र मोहन पाठक
आजाद पंछी - सुरेन्द्र मोहन पाठक



पहला वाक्य:
अपर्णा मेहता लगभग हाँफती हुई बाराखम्बा रोड की एक बहुमंजली इमारत की दूसरी मंजिल पर स्थित कैपिटल सेक्रेटेरियल सर्विसेज के ऑफिस में पहुँची।  

कहानी
अपर्णा मेहता एक ऐसी कंपनी की मुलाजिम थी जहाँ उसका काम क्लाइंट्स की गैरमौजूदगी में उनके टेलीफोन संदेश लेना होता था। उसके अनेक क्लाइंट्स में से एक क्लाइंट उसके मौसेरी बहन,श्यामा सक्सेना, भी थी जो कि आकाशगंगा नाम की इमारत में रहा करती थी।

अपने काम के दौरान अपर्णा ने जब श्यामा के लिए आई एक फोन कॉल  उठाई  तो उसे श्यामा के लिए एक अजीब सा संदेश मिला।

इस शहर से कहीं दूर चली जाओ और कुछ दिन किसी को पता न लगने दो कि तुम कहाँ हो।  इसी में तुम्हारी भलाई है क्योंकि आने वाले चौबीस घंटों में तुम्हारे 'आज़ाद पंछी' के साथ एक बहुत ही भयानक घटना होने वाली है। उसके साथ जो कुछ होना है वो निश्चित हो चुका है और वो किसी भी सूरत में टल नहीं सकता। 

ऐसे रहस्यमय संदेश को पाकर अपर्णा का घबराना लाज़मी ही था।

आखिर कौन था श्यामा को फोन करने वाला शख्स?

आखिर कौन था श्यामा का आजाद पंछी? उसके साथ क्या घटित होने वाला था?

इन्ही प्रश्नों ने अपर्णा को परेशान कर दिया था।

और फिर श्यामा के अपार्टमेंट में एक कत्ल हो गया। इस कत्ल का शक चार से पाँच लोगों में गया क्योंकि एक तो कत्ल हुआ व्यक्ति इन्हें पसंद नहीं था और दूसरा कत्ल के वक्त के आसपास ये सभी इमारत में या फ्लैट में मौजूद थे।

आखिर कत्ल किसने किया? आखिर कत्ल किसका हुआ था? क्या वही आज़ाद पंछी था? क्या कातिल का पता लग पाया?

ऐसे ही कई प्रश्नों का जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिलेगा।


मुख्य किरदार 
अपर्णा मेहता - एक युवती और कैपिटल सेक्रेटेरियल सर्विसेज की मुलाजिम
योगेश मित्तल - अपर्णा का ऑफिस का इंचार्ज
श्यामा सक्सेना - अपर्णा की मौसेरी बहन
ओम सक्सेना - श्यामा का पति
गौरव खुराना - अपर्णा का प्रेमी जो कि एक डॉक्टर था और अपर्णा के साथ ही दिल्ली आया था
रमेश खन्ना - अपर्णा का मौसेरा भाई
सुशीला - अपर्णा की मौसी
डॉक्टर जे सी खुराना - गौरव के पिताजी
मनीषा गुप्ता - श्यामा की दोस्त
संजीव सूरी - मनीषा गुप्ता का मंगेतर
रामकिंकर - एक बिहारी युवा जो श्यामा के कुत्ते घुमाता था
हरनाम सिंह - आकाशगंगा का केयर टेकर
नूरमुहम्मद - आकाशगंगा का लिफ्ट मैन
हीरानन्द गुप्ता - शहर के जाने माने रईस और मनीषा के पिता
अल्वारो मैन्युअल सोरेस गुएरा - एक पुर्तगाली पश्चिमी डांस सिखाने वाला
दिनेश वर्मा - गौरव का एक पत्रकार दोस्त
सब इंस्पेक्टर महेश्वरी - वह पुलिस वाला जो कत्ल की तफ्तीश कर रहा था
भूप सिंह - महेश्वरी के थाने का एस एच ओ
डॉक्टर बिष्ट - पुलिस जे फोरंसिक एक्सपर्ट
तिवारी - पुलिस का फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट
भगवान - आकाश गंगा के ग्राउंड फ्लोर में मौजूद कुरियर सर्विसेज का एक हरकारा
अनंत राम - पुलिस का सिपाही
चन्देल - पुलिस का एस आई
शिखा सिकन्द  - ओम सक्सेना की सेक्रेटरी
मारियो सिल्वेरा - हीरानंद गुप्ता का स्टोर कीपर


मेरे विचार
डेलीहंट एप्प ने ई बुक्स का कारोबार तो बंद कर दिया है लेकिन उसमें मौजूद पुस्तकें आप अभी भी पढ़ सकते हैं। मेरे पास भी डेली हंट एप्प के अन्दर काफी पुस्तकें पड़ी थीं और अब मैं सोच रहा हूँ कि धीरे धीरे उन्हें पढ़ना खत्म कर दूँ। आज़ाद पंछी भी उन्हीं पुस्तकों में से एक है। सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब ने श्रृंखलाबद्ध उपन्यासों से इतर जो उपन्यास लिखे हैं उन्हें उन्होंने थ्रिलर के अंतर्गत रख दिया है। तो अगर आप उनकी वेबसाइट में देखेंगे तो यह किताब थ्रिलर की श्रेणी में ही मिलेगी लेकिन अगर इसकी विधा की बात की जाये तो यह एक मर्डर मिस्ट्री है।

यह उपन्यास पहली बार 1993 में प्रकाशित हुआ था। और फिर 2014 में डेली हंट के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक बुक के रूप में पुनः प्रकाशित हुआ। इस वक्फे के बीच में अगर इसका रीप्रिंट हुआ होगा तो उसके विषय में  मुझे कोई जानकारी नहीं है।

खैर, अब सीधा उपन्यास पर आते हैं।

उपन्यास की शुरुआत एक रहस्यमय फोनकॉल से होती है। फोन कॉल के माध्यम से यह चेतावनी दी जाती है कि किसी आज़ाद पंछी को सम्भलकर रहने की जरूरत है क्योंकि उसके साथ कुछ भी बुरा हो सकता है।

इसके बाद कहानी में बाकी किरदार धीरे धीरे आते हैं। उपन्यास के ज्यादातर किरदार ऐसे हैं जो कि किसी न किसी को धोखा दे रहे हैं। उनके अपने मकसद हैं जिसे पाने के लिए उन्हें कुछ भी करने से गुरेज नहीं है तो इन किरदारों का कथानक में होना इसको और अधिक रहस्यमय बना देता है।

पहले तो उपन्यास में रहस्य यही रहता है कि कॉल किसने किया और किस आजाद पंछी के बाबत वह वार्निंग जारी की गई थी लेकिन फिर जब एक कत्ल हो जाता है तो कहानी में एक रहस्य ये भी जुड़ जाता है कि कत्ल किसने और क्यों किया?

आजाद पंछी एक कसी हुई मर्डर मिस्ट्री है जो कि रहस्य को आखिर तक बरकरार रख पाती है। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है संदिग्ध व्यक्तियों की सूची में इजाफा होता है और सबके पास कत्ल की वाजिब वजह दिखाई देने लगती है। ऐसे में कातिल का अंदाजा लगाना नामुमकिन सा हो जाता है।

फिर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है वैसे वैसे परत दर परत राज उजागर होते हैं जो कि रोमांच बरकरार रखते हैं।
उपन्यास का अंत मुझे थोड़ा खिंचा हुआ लगा। उपन्यास के अंत में मुजरिम सारे राज एक तरह से बताता है। वो भाग मुझे थोड़ा सा खिंचा हुआ लगा था। उसे थोड़ा छोटा किया जा सकता था।

उपन्यास के किरदारों की बात करें तो उपन्यास के किरदार कहानी के हिसाब से एकदम फिट  हैं। जहाँ अपर्णा और गौरव जैसे सीधे साधे लोग हैं तो वहीं श्यामा,मैन्युअल,रमेश  जैसी तेज तरार और स्वार्थ से भरे लोग भी हैं। सब इंस्पेक्टर महेश्वरी का किरदार भी मुझे पसंद आया। वो एक तेज तरार नो नॉनसेंस ऑफिसर है। गलतियाँ करता है लेकिन उन्हें स्वीकारता भी है।  रामकिंकर का किरदार मजाकिया है और कभी कभी हँसाता भी है। वो मुझे आर के नारायण के द टॉकेटिव मैन की याद दिला देता था।

पाठक साहब की एक खासियत यह भी रहती है कि वो अपने खलनायकों को भी भावना प्रधान बना देते हैं। इस बार का खलनायक/खलनायिका भी कुछ ऐसा/ऐसी है। उपन्यास के अंत में उसके लिए थोड़ा बुरा लगता है।

उपन्यास चूँकि 1993 में का है तो उस वक्त की कई ऐसी चीजों का जिक्र इसमें हुआ है जो कि मेरे लिए नई थी।
उपन्यास का एक पहलू सेक्रेटरीयल सर्विसेज है। ऐसी किसी सर्विसेज का मुझे आईडिया नहीं था। मैंने वोइस मेल के विषय में सुना तो था कि कुछ कम्पनियाँ ऐसी होती थी जो कि यह सुविधा देती थी कि अगर आप उनके ग्राहकों को फोन करेंगे और अगर ग्राहक उपलब्ध नही है तो आप अपना संदेश रिकॉर्ड करवा सकते हैं ताकि आप अपनी बात कह सकें। लेकिन ऐसी कंपनी का होना जो मेसेज ले लेती हो ये जानना रोचक था। कई बार पुराने साहित्य को पढ़कर उस वक्त की चीजों के विषय में कुछ नया पता लग जाता है।

उपन्यास में प्यार है,धोखा है,इर्ष्या है और लालच है। इन सब भावनाओं को पाठक साहब ने इस खूबसूरती से  मिश्रित किया है कि उपन्यास एक बैठक में पठनीय बन पड़ा है। उपन्यास में रहस्य अंत तक बरकरार रहता है जो कि एक अच्छी रहस्यकथा का गुण होता है तो इस फ्रंट पर भी उपन्यास पूरी तरह पास होता है।

रेटिंग: 4.5/5

उपन्यास मुझे तो पसंद आया। अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे टिप्पणियों के माध्यम से जरूर बताइयेगा। 


मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के दूसरे उपन्यास पढ़े हैं। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

हिन्दी पल्प फिक्शन के दूसरे उपन्यास 

© विकास नैनवाल 'अंजान'
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8 Comments
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  1. पहला वाक्य:पहुँचा या पहुँची?

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  2. बहुत बढ़िया समीक्षा ..., आपकी रेटिंग उपन्यास पढ़ने को प्रेरित कर रही है । अवसर और उपन्यास जैसे ही मिलते हैं जरूर पढ़ूंगी ।

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    1. जी, आभार। वैसे तो अब पाठक साहब के उपन्यास किंडल पर उपलब्ध हो रहे हैं। उम्मीद है जल्द ही ये भी उधर मौजूद होगा।
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    2. Itni acchi samiksha se padhne ki iccha ho gayi. Lekin ye upanyas to kahin available hi nahi hai. What to do

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    3. जी,पहले डेलीहंट में था। अभी किंडल में उपन्यास आने लगे हैं शायद कुछ दिनों में उधर यह मौजूद हों।

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  3. यह नॉवेल मुझे मिल रहा था पर मैंने लिया नही था क्योकि मुझे सीरीज में लिखे नॉवेल ज्यादा पसंद आते है | अब आपका रिव्यू देखकर लग रहा है अच्छा नॉवेल छोड़ दिया मैंने | दुबारा मिला तो जरूर लूँगा |

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    1. जी आपने अच्छा मौका छोड़ दिया। व्यक्तिगत तौर पर मुझे पाठक साहब के एकल उपन्यास ज्यादा पसंद आते हैं। सीरीज में एक बंधन होता है जबकि एकल उपन्यासों में ऐसा कुछ नहीं होता है और इस कारण अलग अलग विषय वस्तु पढ़ने को मिल जाती है। दोबारा मौका लगे तो जरूर ख़रीदियेगा।

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