नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

डार्क नाईट - संदीप नैयर

किताब 6 अप्रैल 2019 से 7 अप्रैल 2019 के बीच पढ़ी गई

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक
प्रकाशक : रेड ग्रेब्स
पृष्ठ संख्या:199
एएसआईएन: B079H3JDK5


डार्क नाईट - संदीप नैयर
डार्क नाईट - संदीप नैयर 

पहला वाक्य: 
"आपका नाम?" उसकी स्लेटी आँखों में मुझे एक कौतुक सा खिंचता दिखाई दिया।

काम पेशे से तो एक योग गुरु था लेकिन उसकी कार्य शैली और जीवन जीने का तरीका एक दम अलग था। उसे देखकर उसके पेशे का अंदाजा लगाना मुश्किल था। एक दिन  फ्लाइट पकड़ने के लिए काम जब आई जी आई अन्तर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट के  लाउन्ज में पहुँचा तो उसकी मुलाकात मीरा से हुई। दोनों ही सुबह तक फ्लाइट के इंतजार में उधर बैठे हुए थे।

वक्त काटने के लिए बातचीत हुई और कबीर का जिक्र निकला। कबीर काम का शिष्य था और काम के अनुसार उसकी कहानी दिलचस्प, ट्रैजिक, डिस्ट्रेसिंग और इरोटिक थी। मीरा कबीर की कहानी सुनना चाहती थी।

और फिर काम ने कहानी शुरू की।

आखिर कौन था कबीर? क्या थी उसकी कहानी? काम उसे कैसे जानता था?

इन्ही सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास के कथानक में मिलेंगे।
मुख्य किरदार :
काम - एक योग गुरु 
मीरा - एक युवती जो काम को एअरपोर्ट लाउन्ज में मिली थी 
कबीर - काम का शिष्य
प्रिया - कबीर की गर्लफ्रेंड
समीर - कबीर का भाई
कूल - कबीर के स्कूल का एक छात्र
हिकिमा बट - कबीर के स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की
टीना - समीर की गर्लफ्रेंड
राज - कबीर के कॉलेज में पढ़ने वाला एक लड़का
नेहा - एक लड़की जिसे कबीर एक पार्टी में मिला था
साहिल - नेहा का भूतपूर्व प्रेमी
माया - प्रिया की दोस्त

संदीप नैयर जी  का उपन्यास 'डार्क नाईट' एक युवा कबीर की कहानी है। उपन्यास के माध्यम से लेखक ने युवाओं की ज़िन्दगी और उस ज़िन्दगी को जीते हुए वे किन किन  परेशानियों से सामना कर रहे हैं उसको दर्शाने की कोशिश की है। उपन्यास के तीनों मुख्य किरदार (कबीर, माया और प्रिया) युवा  ही हैं और उनके जीवन जीने के तरीके अलग अलग हैं।उनकी अपनी परेशानियाँ हैं जिससे उन्हें जूझना होता है। वो क्या हैं? यह उपन्यास पढ़कर ही आपको पता लगेगा।

उपन्यास का शीर्षक 16 शताब्दी में हुए एक स्पेनिश संत कवि संत जॉन ऑफ़ द क्रॉस की कविता डार्क नाईट ऑफ़ द सोल से लिया गया है। उपन्यास में डार्क नाईट अवसाद की उस दशा को कहा गया है जहाँ ज़िन्दगी बेमानी लगने लगती है, आदमी सब कुछ होते हुए भी यह महसूस करता है कि उसका होना बेकार है और अपनी इस दशा में वह अवसाद के अन्धकार में डूबता चला जाता है। वहीं उपन्यास में कबीर के माध्यम से यह दर्शाया भी गया है कि कैसे आज भी समाज अवसाद को नहीं समझ पाया है।

कबीर मना न कर सका। हर किसी को यही लगता था कि उसका डिप्रेशन उसका खुद का पैदा किया हुआ था, और उसका बस एक ही इलाज था, चिल आउट एंड हैव फन ।

व्यक्ति की  स्थिति न समझ पाने के कारण कई बार हम लोग उसे नज़रअंदाज कर देते हैं और जब वह कुछ खतरनाक कदम उठाता है तो फिर हैरान होते हैं कि ऐसा कैसे हुआ? जबकि वह इशारे तो न जाने कब से कर रहा था बस हम उसे नहीं समझ पाए थे।

यह उपन्यास कबीर के नौ साल के जीवन को दर्शाता है। उसके पन्द्रह से पच्चीस साल के बीच के जीवन की कहानी को कथानक के रूप में बुना गया है।

उपन्यास का फॉर्मेट की बात करें तो उपन्यास में कबीर की कहानी हमे काम के द्वारा पता चलती है। यह कहानी दो काल खंडों में हमे साथ साथ चलती दिखती है। हम कभी कबीर के वर्तमान को देखते हैं। और कभी बेक फ़्लैश में जाकर हम कबीर के अतीत के उन पन्नों को देखते हैं जिन्होंने आज के कबीर को गढ़ा है। इस तरह दो काल खंड  की यात्रा करते हुए हम कबीर को, उसके अवसाद, उसकी ग्रन्थियों को समझने की कोशिश करते हैं।

उपन्यास मूलतः कबीर और उसकी ज़िन्दगी में आई हुई लड़कियों के चारों तरफ ही घूमता है। उसके बचपन यानी स्कूल के दिनों में यह लड़कियाँ लूसी, टीना और हिकिमा थीं। उसके कॉलेज में यह लड़की नेहा थी और उसके कॉलेज से निकलने के बाद उसके जीवन में आई लड़कियाँ प्रिया और माया थीं। इन लड़कियों के साथ हुए अनुभवों ने उसको कैसे गढ़ा यह हम उपन्यास पढ़ते हुए जानते हैं।

लड़कियों की बात करें तो लूसी और टीना काफी कथानक में काफी कम जगह लेती हैं। लूसी का तो खाली जिक्र है और टीना को भी हम एक दो जगह ही देखते हैं जहाँ उसका किरदार उतना नहीं निखर पाता है। लेकिन हिकिमा का किरदार अच्छे तरह से गढ़े गया है। वह कबीर के मुकाबले ज्यादा परिपक्व है। मेरा ख्याल है कि लड़कियों में एक तरह की परिपक्वता होती ही है। मेरा अनुमान है (जिसमें मैं गलत भी हो सकता हूँ) यह  शायद इसलिए होता है  क्योंकि उन्हें अपने होने का अहसास काफी पहले हो जाता है। लोगों की नजरों में फर्क दिखाई देने लग जाता है और वो आदमी को ज्यादा जल्दी तोलना सीख जाती हैं। शायद यही कारण हैं कि प्रेम में कई बार वो लड़कों से ज्यादा निडर भी होती हैं।

टीना और हिकिमा को  हम कबीर के बचपन के फ़्लैश बेक में देखते हैं लेकिन मेरी इच्छा थी कि उसके वर्तमान में भी देखें ताकि कबीर के अन्दर आये बदलाव के विषय में वो क्या सोचती हैं यह पाठक के रूप में हमे पता चले।

इसके बाद कबीर की ज़िन्दगी में नेहा आती है। यह हिकिमा और टीना से बिलकुल अलग किरदार है। टूटा हुआ और अवसाद ग्रस्त। कबीर एक ही मुलाकात में इससे आकर्षित हो जाता है। इस किस्से का अंत जिस तरह से हुआ वह मुझे दुखद लगा। यह एक ऐसी डार्क नाईट थी जिसके आगे कभी उजाला नहीं हुआ।

इसके बाद कबीर के  जीवन में  प्रिया और माया आती हैं। दोनों ही सशक्त किरदार हैं। उन्हें पता है उन्हें क्या चाहिए। इस कारण कबीर को उनके साथ देखकर अजीब लगा। लेकिन फिर मैंने कई बार ऐसे जोड़े देखे हैं जिन्हें देखकर यही लगता है कि ये इसके साथ क्या कर रही है। यहाँ पैमाना बाहरी खूबसूरती का नहीं अंदरूनी खूबसूरती या दिमाग का भी होता है। कबीर उनके सामने न केवल कमजोर है बल्कि कई बार अपरिपक्वता भी दिखलाता है।

यही हम लोग माया और प्रिया की डार्क नाईट से भी परिचित होते हैं। उनके अपने अपने अवसाद हैं जिनसे वो जूझती हैं। यह देखना इसलिए भी रोचक है क्योंकि वो लोग ऊपर से काफी सशक्त किरदार नज़र आती हैं लेकिन यही चीज दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना सम्पन्न हो, कितना ताकतवर हो, उसे भी डार्क नाईट आकर घेर लेती है। उनकी डार्क नाईट कबीर से अलग जरूर है लेकिन उससे कम नहीं है। लेकिन फिर डार्क नाईट का मतलब जीवन का अंत नहीं होता। यह भी उपन्यास हमे सिखाता है। इससे गुजरकर आदमी अपने में बदलाव लाता है और बेहतर इनसान बनकर निकलता है। बस यह हमे तय करना होता है कि हम इसे परेशानी के तौर पर देखते हैं या और बेहतर होने के अवसर के तौर पर देखते हैं।


मैं स्कूल के वक्त के कबीर से तो जुड़ाव महसूस कर पाता हूँ लेकिन बाद के कबीर से मुझे खीज ही होती है। कम से कम मैं तो उससे जुड़ाव महसूस नहीं कर पाता हूँ। वो ऐसे ऐसे निर्णय लेता है कि अगर वो मेरा दोस्त होता तो उसके कान के नीचे मैं दो तीन बार बजाता।

कहानी का अंत मुझे इसी कारण कमजोर लगा क्योंकि जो हरकतें कबीर करता है वह थोडा सा भी समझदार इनसान नहीं करेगा। अंत में भी वह दासता स्वीकार कर देता है और अपने जीवन के निर्णय किसी और पर छोड़ देता है। यह बात अलहदा है कि वो निर्णय उसके लिए ठीक है। अंत और बेहतर हो सकता था। कबीर प्रेम का अर्थ तो सीख जाता है लेकिन वह उसमें कुछ और परिपक्वता, निर्णय लेने की क्षमता का विकास होते दर्शाया जा सकता था। लेकिन वह फिर लेखक का डोमेन है तो उन्होंने अपने हिसाब से जो ठीक सोचा वह लिखा है।

खैर,यह तो किरदार किरदार की बात है। किरदार कई बार ऐसे बन पड़ते हैं कि आपको उनसे खीज होने लगती है। पर ऐसे तो इनसान भी होते हैं। आपके आस पास ऐसे कई इनसान दिख जाते हैं और आप सोचने लगते हो कि इतने अंसख्य शुक्राणुओं के बीच वह दौड़ हुई थी और उसमें ये कैसे जीत गया? आप हैरान होने के सिवा और उस कुदरत के करिश्मे के आगे नतमस्तक होने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते हैं।

अगर उपन्यास की बात करूं तो उपन्यास पठनीय है। कबीर की ज्यादातर ग्रन्थियां यौन सम्बन्धी है तो उपन्यास भी इन्ही सब चीजों के आस पास बुना हुआ है। प्रेम असल में क्या है? यह हमे देखने को मिलता है। इसके अलावा जो सबसे बड़ी सीख हमे मिलती है वह यह प्रेम को पाना ही अंतिम लक्ष्य नहीं है, प्रेम को निभाना उससे बड़ी बात है। हमे प्रेम के योग्य बनना पड़ता है। प्रेम में अपने को खोना नहीं होता बल्कि प्रेम में अपने को और ऊंचा उठाकर अपने प्रेमी को भी ऊंचा उठाना होता है।

प्रेम में समर्पण का अर्थ दासता नहीं होता...प्रेम में समर्पण का अर्थ, अपना सम्मान खोना नहीं, बल्कि अपने प्रेमी का सम्बल और सम्मान बनना होता है.... प्रेम में समर्पण, बंधन नहीं, बल्कि मुक्ति होता है; मुक्ति, जो दिव्यता की ओर ले जाती है।


यौनाकर्षण को लेकर एक बढ़िया बात कबीर के माध्यम से लेखक कहते हैं:

उसने कहीं पढ़ रखा था कि औरत की मुलायम जाँघों का मखमली स्पर्श सबसे खूबसूरत होता है, मगर उस वक्त उसे लग रहा था कि लिखने वाले ने गलत लिखा था... सबसे खूबसूरत तो औरत की आँखों का संसार होता है। जाँघों का मखमल तो वक्त की मार से ढीला पड़ जाता है, मगर आँखों का संसार वक्त के परे बसा होता है।

वहीं नारी के सौन्दर्य को लेकर लिखा गया लेखक का यह कथन भी विचारणीय है:

नारी का सौन्दर्य उसकी देह, रूप और श्रृंगार के परे भी बसा होता है... उसके सौम्य स्वभाव में, उसकी करुणा में, उसके नारीत्व की दिव्य प्रकृति में

हमारे समाज का सबसे बड़ा नुकसान उसके नारीत्व को खोने में ही है; और हमारे समाज की मुक्ति, उस नारीत्व को फिर से जीवित करने  में है।

उपन्यास की भाषा बेहतरीन है। बीच बीच में कई फलसफे लेखक देते हैं जो आपको सोचने के लिए काफी सामान दे देते हैं। भाषा के ऊपर संदीप जी की पकड़ वैसे भी बहुत अच्छी रही है। इसके कई नमूने इधर मिलते हैं।

उपन्यास पठनीय है और अध्याय छोटे छोटे हैं तो फटाफट पढ़े जाते हैं।

उपन्यास का मैंने ई बुक संस्करण पढ़ा था। इसमें कुछ जगह वर्तनी की गलतियाँ हैं। 'आखिर' कई जगह गलत लिखा हुआ है। इसके अलावा कई बार अंग्रेजी का प्रयोग ऐसी जगह पर भी किया हुआ है जहाँ नहीं भी होता तो चलता। कई जगह अंग्रेजी के लम्बे संवाद हैं और अंग्रेजी के काफी शब्द इस्तेमाल किये हैं। उन संवादों का हिन्दी अनुवाद दिया जा सकता था और उन शब्दों का अर्थ दिया जा सकता था और दिया जाना भी चाहिए। यह मानकर चलना कि पढ़ने वाले को अंग्रेजी आती होगी मेरे ख्याल से गलत है। इसे ऐसे देखें कि मैं मूलतः गढ़वाली हूँ। अगर कहानी लिखूं जो गढ़वाल की हो तो उस परिवेश में कई बार किरदार गढ़वाली बोलते हुए दिखेंगे। उधर मैं उन संवादों को ज्यों का त्यों नहीं रख सकता हूँ। मुझे उनका हिन्दी अर्थ कोष्टक में देना ही होगा क्योंकि हो सकता है कि हिन्दी पढने वाले को वो समझ न आये भले ही गढ़वाली हिन्दी के काफी नजदीक है।

वैसे मुझे ज्ञात हुआ है कि डार्क नाईट के नवीन संस्करण में अंग्रेजी को कम किया गया है तो यह अच्छी बात है। शायद यह बदलाव अभी ई बुक में नहीं हुआ होगा।

उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आये:

हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहाँ आपका काम, आपका व्यवसाय ही आपकी पहचान होता है। आप कैसे इनसान हैं, उसकी पहचान व्यवसाय की पहचान के पीछे ढकी ही रहती है।

कौन कहता है कि फैंटसी कभी सच नहीं होती ! क्या हर किसी की रियलिटी किसी और की फैंटसी नहीं है? हम सब किसी न किसी की कल्पना, किसी न कीस के सपने का साकार रूप ही तो हैं।

अज्ञात का भय, आनन्द के मार्ग की बहुत बड़ी रुकावट होता है; मगर उससे भी बड़ी रुकावट होता है मनुष्य का खुद को उस आनन्द के लायक न समझना।

पर्दों और पन्नों पर रचा सेक्स, चादरों पर हुए सेक्स से कहीं अधिक रोमांच देता है।

अहम पर लगी चोट सबसे गहरी होती है, और खास तौर पर जब वह अहम के सबसे कमजोर हिस्से पर लगी हो।

सामने वाले के तंज को मुस्कराकर हँसी में उड़ा देना ही उसकी चोट से बचने का शबे आसान तरीका होता है।

पता नहीं प्यार खूबसूरत होता है, या जो खूबसूरत है उससे प्यार होता है; मगर प्यार में इनसान खुद बहुत खूबसूरत हो जाता है। 

सीखने और बड़े होने की उम्र में होने का अर्थ यह नहीं होता कि आप कुछ जानते ही नहीं हैं,या आपमें कोई परिपक्वता नहीं है; उसका अर्थ यही होता है कि आप जो जानते हैं वह पर्याप्त नहीं है; आपको अभी और सीखना और जानना है और इसी सीखने और जानने में आप यह भी सीखते हैं कि आप कितना भी जान लें, वह कभी पर्याप्त नहीं होता।

जब अपने दुःख परेशान करें, तो दूसरों के दुःख समझो; अपने दुःख कम लगने लगते हैं।

जिस शहर में ज़िन्दगी की रफ्तार जितनी तेज हो; उसका ट्रैफिक उतना ही स्लो होता है।

प्रकृति अवसर देती है, दंड नहीं। हम जिसे बुरा वक्त कहते हैं, वह दरअसल अवसर होता है उन कमजोरियों, उन बुराइयों और उन सीमाओं से बाहर निकलने का, जो उस बुरे वक्त को पैदा करती हैं। जीवन विकास और विस्तार चाहता है और डार्क नाईट अवसर देती है, अपनी सीमाओं को तोड़कर विस्तार करने का।

अंत में यही कहूँगा कि प्रेम की चाह हर इनसान की होती है और वह इसके लिए भटकता भी रहता है। यही काम कबीर भी करता है। उसकी भटकन से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। कई जगह आप खुद को उसमें पाएंगे, कई जगह हो सकता है मेरी तरह आप उससे खीझ भी महसूस करेंगे लेकिन फिर भी कबीर से हुई यह मुलाक़ात आपको काफी कुछ सोचने के लिए दे जाएगी। मुझे तो काफी कुछ मिला। अब शायद आपकी बारी है।

रेटिंग : 3/5

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4 Comments
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  1. बेहद शुक्रिया विकास भाई. लम्बा इंतज़ार समाप्त हुआ :-)

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    1. संदीप जी,ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए हार्दिक आभार। डार्क नाईट के अगले पार्ट का इंतजार रहेगा।

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