नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

जे - लोकेश गुलयानी

किताब 8 फ़रवरी 2019 से 9 फरवरी 2019 के बीच पढ़ी गई

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट:
पेपरबैक |  पृष्ठ संख्या: 144 | प्रकाशन: कश्यप पब्लिकेशन

पुस्तक लिंक: अमेज़न

जे - लोकेश गुलयानी
जे - लोकेश गुलयानी

पहला वाक्य:
'मत जाओ जैक, मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूँगी' सारे रास्ते मेरे जेहन में प्रिसला का ही चेहरा घूम रहा था।

प्रो विंड्स नाम की कम्पनी को जैसलमेर में विंड मिल लगाने का प्रोजेक्ट मिला तो उन्होंने इसके लिए एक टीम का गठन किया। इस प्रोजेक्ट की मैनेजर थी जैनिफर उर्फ़ जे। माया इस काम में जैनिफर की मदद करने वाली थी। वहीं इसी प्रोजेक्ट के लिए जैक को यू के से कन्सल्टेंट के तौर पर बुलाया गया था।

जैक जल्द से जल्द इस प्रोजेक्ट को निपटाकर वापस अपने देश लौट जाना चाहता था क्योंकि वहाँ उसकी मंगेतर थी जो उसका इन्तजार कर रही थी।

लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।

जे के अन्दर कुछ ऐसा था जिससे वो परेशान थी।  कुछ ऐसा जिससे वो खुद ही अनजान थी।

वही जैक को जैसलमेर में एलन नाम का शख्स मिला जो किन्ही रहस्यमय ताकतों की खोज में इधर आया था। एलन ने ही जैक को बताया कि जे को मदद की दरकार है।

और फिर एक दिन जे गायब हो गई।

आखिर कौन था एलन? वो किस चीज की तलाश में जैसलमेर आया था?
आखिर 'जे' को क्या परेशानी थी? 
आखिर जे किधर चली गई थी? 
क्या जैक और माया जे को ढूँढ पाए? इसके लिए उन्हें किन परेशानियों से दो चार होना पड़ा?

मुख्य किरदार:
जैक - एक कंसलटेंट जो कि जैसलमेर में एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में आया था
प्रिसला - जैक की मंगेतर
जेनिफर - प्रो विंड्स, जिसका प्रोजेक्ट जैसलमेर में था, की प्रोजेक्ट मेनेजर
माया - जेनिफर की सहकर्मचारी
सुरेश - ड्राईवर जो कि जैक के साथ रहने वाला था
रमेश - होटल जय विलास का मेनेजर
एलन डोनाल्ड - एक साउथ अफ्रीकन पर्यटक जो भारत भ्रमण पर आया था
एंड्रियू  - प्रिसला का पूर्व बॉय फ्रेंड
टोनी - एलन का बेटा
मरियम - एलन की बीवी
थॉमस - एलन का दोस्त और शिक्षक
रसूल - जय विलास होटल में काम करने वाला व्यक्ति जो एलन को खाबा लेकर गया था
ब्रह्मदत्त - एक तांत्रिक जिसकी तलाश एलन को थी
कप्तान विक्रम - माया का बचपन का दोस्त
गुमान सिंह - राजस्थान पुलिस का इंस्पेक्टर

लोकेश गुलयानी जी के इस उपन्यास जे को पाने की कहानी भी बहुत रोचक है। मैं अक्सर हिन्दी में हॉरर कृतियों की तलाश में रहता हूँ। ऐसे ही मैं अमेज़न में  हॉरर उपन्यासों को तलाश रहा था कि यह उपन्यास मेरे नजरों से गुजरा। उपन्यास के विषय में कहीं कोई जानकारी नहीं थी लेकिन चूँकि उपन्यास हॉरर था तो मैंने इसे मंगवाने की सोची। आर्डर किया और फिर आर्डर करके पछताना पड़ा।

हुआ ये कि पहले आर्डर की डेट आगे बढ़ती रही और फिर आखिर में आर्डर कैंसिल हो गया। उसके बाद कुछ साल मैंने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। मेरा एक दोस्त है जो कि हॉरर उपन्यास पढ़ता है। एक बार उसके लिए यह आर्डर किया तो उसके साथ भी यही हुआ। उसने फिर सेलर जो कि प्रकाशक ही थे के फेसबुक पृष्ठ में जाकर उन्हें काफी बुरा भला कहा तो उसका आर्डर भेजा गया। इससे मुझे भी सम्बल मिला और मैंने भी आर्डर किया। लेकिन मेरी किस्मत इतनी अच्छी नहीं निकली। आर्डर भेजा तो गया लेकिन भारतीय डाक की मेहरबानी से वो कहीं और ही भिजवा दिया गया और उनके पोस्ट ऑफिस में धूल खाता रहा। ट्रैकिंग आईडी भी दक्षिण दिल्ली का पता दिखाती रही। मैंने अमेज़न को इस विषय में सूचित किया और पुराना आर्डर कैंसिल करके नया आर्डर किया। इस बार नया आर्डर सफल हुआ। अमेज़न से पुराने का पैसा रिफंड किया और आखिर यह किताब मेरे पास पहुँची। यह सब पिछले साल अक्टूबर के आखिरी हफ्ते की बात है। जब यह उपन्यास आया तो मैं कुछ और पढ़ रहा था। फिर मैं इस उपन्यास को दिवाली में घर ला गया और इसे घर ही भूल गया। इस बार घर आया तो उपन्यास पढ़ना हुआ। अब उपन्यास पढ़ना खत्म किया है तो सोचता हूँ कि ऐसी शिद्दत से शायद ही कभी मैंने किसी उपन्यास को पढ़ने का प्रयत्न किया हो। वो भी ऐसे उपन्यास को जिसके विषय में केवल इतना पता था कि हॉरर उपन्यास है। यह शायद मेरे हॉरर उपन्यासों के प्रति प्रेम ही था। खैर,जो भी हो उपन्यास पढ़कर यही कहूँगा कि ये सब मेहनत जाया तो नहीं ही गई।

उपन्यास का घटनाक्रम जैसलमेर और उसके आस पास की जगहों में घटित होता है। उपन्यास का पूरा घटनाक्रम 10 दिनों: 21 से 31 दिसम्बर के बीच में फैला हुआ है। यह उपन्यास मुझे इसलिए भी पसंद आया कि 2018 के 30 और 31 दिसम्बर की तारीक को मैं जैसलमेर में ही था। इन दो दिनों में  मैंने उन ज्यादतर जगहों को देखा था जिसका कि जिक्र इस उपन्यास में है। फिर चाहे वो विंडमिल हों, खाबा हो, सोनार किला हो या सम के रेत के टीले हों। अगर मुझे पहले इस बात का भान होता कि उपन्यास जैसलमेर में घटित होता है तो मैं इस यात्रा में इस उपन्यास को लेकर भी जरूर जाता।

उपन्यास की कहानी की बात करूँ तो उपन्यास शुरुआत से लेकर अंत तक रोचकता लिए हुए है। कहानी तीन चार किरदारों: जैक, जैनिफर, माया, और एलन के चहुँ ओर घूमती है। कहानी पाठको को दो तरह से बताई गई है।

एक तो हम जैक के नजरिये से कहानी को देखते हैं। उसके साथ जो भी कुछ घटित होता है वो हम प्रथम पुरुष में देखते हैं। इसके अलावा बाकी किरदारों के साथ होने वाली घटनाएं हम तृतीय पुरुष(थर्ड पर्सन) में देखते हैं। जैक के जैसलमेर आगमन से कहानी की शुरुआत होती है। फिर उससे बाकी के किरदार मिलते जाते हैं और उनके जिंदगियों से पाठक वाकिफ होता जाता है।  वो क्यों इधर हैं, उन किरदारों की क्या क्या परेशानियाँ है यह पाठक को पता चलता जाता है। जैक के अनुभवों से पाठक यह भी जानता है कि जो कुछ भी दिख रहा है वैसा कुछ नहीं है। कुछ तो रहस्यमय इन किरदारों के साथ घटित हो रहा है। वो अलौकिक है या दिमागी फितूर यह कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है उससे साफ होता जाता है।

कहानी में अलौकिक तत्व(supernatural elements) इतने अच्छे तरह से गुंथे हुए हैं कि वह रचना के बहाव को बाधित नहीं करते हैं। कहीं भी कुछ भी हद से ज्यादा नहीं है। यह थोड़े बहुत हैं और इस कारण ऊब पैदा नहीं करते हैं। आम सा चल रहा जीवन किस तरह अचानक क्या मोड़ ले ले यह उपन्यास में बखूबी दर्शाया गया है।

उपन्यास में माया और उसके माँ के बीच के संवाद खासे रोचक हैं। शादी के लिए परिवार वालों द्वारा दिया जा रहा दबाव कुछ ऐसा है जिसे हर भारतीय नौजवान ने झेला है। मैं भी झेल रहा हूँ तो और इसलिए माया से  सहानुभूति महसूस कर सकता था। उनके बीच के वार्तालाप पढ़कर मुझे हँसी आ जाती थी।

उपन्यास में कमी तो कुछ नहीं है बस एक प्रसंग है जो अटपटा लगा। उपन्यास में एक जगह एक किरदार किसी दूसरे किरदार को कॉल करता है। कॉल 24 को आता है लेकिन असल में कॉल 27 को किया गया था। जिसको कॉल आता है जब वो किरदार कॉल लॉग देखता है तो 24 की जगह वह लॉग में भी 27 दिखाता है। यह एक टाइम वार्प(time warp: ऐसी स्थिति जहाँ भूत भविष्य और वर्तमान की घटनाएं आपस में गड मड हो जाती हैं ) की स्थिति है जो कि शायद अलौकिक परिस्थितों के कारण उत्पन्न हुई थी। सभी किरदार ये देखकर हैरान होते हैं लेकिन आगे चलकर वो इस विषय के ऊपर बात नहीं करते हैं। अगर यह घटना मेरे साथ हुई होती तो शायद मैं और मेरे साथी इस पर बात करते।

दूसरी चीज मुझे जो लगी वो कमी तो नहीं थी लेकिन कुछ ऐसा है जो मेरे ख्याल से उपन्यास में होता तो ज्यादा बेहतर होता। उपन्यास में प्रोलॉग(प्रस्तावना) नहीं है। उपन्यास में एक अलौकिक किरदार है। अगर उसकी कहानी के कुछ अंश प्रस्तावना के तौर पर होते तो पाठक शुरू से रोमांचित होकर कहानी में उतरता। उदाहरण के लिए केवल इतना ही होता कि एक शाम को कुछ पर्यटक किसी किले में आते हैं और फिर उनकी लाश मिलती है। और स्थानीय लोग कहते हैं कि यह उसी किरदार  का शाप है। इसमें बिना किरदार का नाम लिए भी काम हो सकता था। अगर ऐसा होता तो मेरे ख्याल से उपन्यास और ज्यादा मजेदार बन सकता था।

अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास ने मेरा भरपूर मनोरंजन किया। कथानक तेज रफ्तार है और कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि इसे खींचा गया हो। अगर आप एक अच्छा रोमांचक उपन्यास (जिसमें हॉरर का तड़का भी हो) पढ़ना चाहते हैं तो यह आपको निराश नहीं करेगा।
किताब की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आईं :
इनसान की फितरित कमाल की है, वो वक्त की ताल में अपनी लय मिलाना खूब जानता है, वक्त कम हो तो लय बढ़ जाती है और ज्यादा हो तो लय खुदबखुद कम हो जाती है। मगर हालात जो भी हो शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि वक्त ने अपनी ताल किसी आदमी के लिए कम या ज्यादा की हो, समझौता हमेशा आदमी को ही करना पड़ता है।

ज़िन्दगी में रिश्ते स्ट्रॉबेरी की तरह होने चाईए जिस पर दाँत गड़ाओ तो खट्टा या मीठा रस निकले न कि एक च्युइंग गम जो कुछ समय बाद अपना स्वाद खो दे पर चबाना मजबूरी हो जाये।

रेगिस्तान की ज़िंदगी रेत सी है जब तक न उड़ाओ एक जगह थमी रहती है, और उड़ा दो तो पहले से नहीं रहती।


मेरी रेटिंग: 4/5
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा ? अपने विचारों से मुझे अवगत जरूर करवाईयेगा।

अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है और पढ़ने की इच्छा रखते हैं तो आप इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
पेपरबैक
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13 Comments
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  1. समीक्षा विस्तृत और बहुत बढ़िया लगी। नॉवेल के बारे में इस तरह लिखा है की जिसने नही पढ़ा वो भी जरूर पढ़ेगा। मैंने भी अभी हाल ही में यह नॉवेल पढ़ा है और मुझे भी बहुत पसंद आया। लेखक ने एक बढ़िया नॉवेल दिया है पाठको को। लेखक की लेखन शैली और शब्द चयन उम्दा है। मुझे भी वो टाइम वार्प वाली बात खटकी थी। कम से कम इस बारे में किरदारों को बात करते हुए या यह कैसे हुआ इसका कारण बताना चाहिए था जोकि अच्छा रहता । और मैं आपकी बात से सहमत हूँ की प्रस्तावना होती तो स्टार्ट से ही रोमांच बढ़ जाता। जैसी प्रस्तावना आपने सुझाई वो वाकई रोमांच जगाने वाली और उत्सुकता को बढ़ाने वाली है।

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    1. जी हार्दिक आभार। मैंने जे के लिए इतना उतावला था कि उनकी दूसरी किताब बोध भी मैंने मँगवा दी थी। उसे भी जल्द ही पढ़ूँगा।

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  2. बेहद रोचक समीक्षा । मंगवाया तो है बस आप जैसा वाकया ना हो । लिखते रहिये ,हार्दिक शुभकामनाएँँ ।

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    1. जी, उम्मीद पर दुनिया कायम है। आपका अनुभव कैसा रहा ये जरूर बताइयेगा।

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  3. विकास जी,

    सबसे पहले मेरे पहले उपन्यास को इतना स्नेह देने हेतु धन्यवाद। prologue वस्तुतः भूमिका में जितना लिखा गया है उतना ही है। जिस टाइम-रैप की आप बात कर रहे हैं उसका जवाब पेज 60, 94 और 106-107 पर दिया है (मैं अपने पास उपलब्ध मैनुस्क्रिप्ट देख कर बोल रहा हूँ, किताब में १-२ पेज आगे-पीछे हो सकता है). चूंकि मेरा पहला उपन्यास था इसलिए मैं उतना कर पाया जितना मेरी अपनी समझ और मार्गदर्शन था। मुझे खुद ये बहुत अखरता है पर मुझे ये इन्ही कमियों के साथ भी भाता है जैसी प्रकृति है असमतल।

    आपने कहानी में डूब कर रिव्यु लिखा है तो इस पर मैं आपको एक ट्रिविया देता हूँ। ये कहानी मैंने कॉमेडी के तौर पर शुरू की थी पर ये अपने आप स्पिरिचुअल हॉरर में तब्दील हो गयी। नूरा ने मुझे, लिखते हुए और मेरी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में गूजबंप्स दिए है। मैं आज भी ये उपन्यास बच्चों और गर्भवती औरतों को पढ़ने को मना करता हूँ। अब आप बोध पढ़ेंगे तो उसे एक अलग ही कलेवर में पायेंगे, शायद आप ये भी महसूस कर पाये कि एक लेखक के बतौर लोकेश गुलयानी ने पहले से कुछ परिपक्व लेखन किया है।

    आपका
    लोकेश गुलयानी

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    1. लोकेश जी ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद। मैं एक बार फिर वो पृष्ट देखूँगा। जी कहानियाँ ऐसी ही होती हैं। आप शुरू तो एक तरह से करते हैं लेकिन फिर वो अपना स्वरूप ले लेती हैं। बोध भी जल्द ही पढ़ता हूँ।

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    2. नमस्कार



      विकास जी, बहुत दिन हुए सोचा आज पूछ लूँ कि अगर आपने बोध पढ़ ली तो कैसी लगी?


      धन्यवाद

      लोकेश गुलयानी

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    3. जी बोध अभी तक पढ़ी नहीं है। पढ़ते ही अपने विचार जरूर साझा करूँगा।

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  4. कथानक रोचक लग रहा है। उपन्यास पढने की इच्छा जागृत हुयी है।
    धन्यवाद।

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    1. जी पढ़कर अपने विचार जरूर साझा करियेगा।

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  5. जी वह टाइम वार्प के एक्सप्लेनेशन की उमीद मैं भी कर रहा था। उसने कहानी मे रोमांच बड़ा दिया था पर फिर जब उसका कोई एक्सप्लेनेशन ही नही मिला तो वह वह रोमांच कही लुप्त हो गया। ऐसा लगा कि वह प्रसंग बेमतलब का था। इसी के साथ ही प्रिस्ला और एंड्रयू की कहानी भी बेमतलब की लगी। कहानी का अंत काफी फिल्मी था।

    पर इन सब के बावजूद मुझे पुस्तक पढ़ने मे बेहद मज़ा आया। आपका भी शुक्रिया जो आपने इस पुस्तक से परिचय करवाया।

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    1. जी आभार!!! ऐसी टिप्पणियाँ ही ब्लॉग पर निरंतर कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।

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