नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बिचौलिया - सुरेंद्र मोहन पाठक

दिसंबर 4 2018  से दिसंबर 13 2018 के बीच पढ़ी गई

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 368
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स
श्रृंखला: सुनील #116
बिचौलिया - सुरेंद्र मोहन पाठक
बिचौलिया - सुरेंद्र मोहन पाठक
पहला वाक्य:
कॉल बेल बजी।

अटवाल परिवार के ऊपर मानो मुसीबत का पहाड़ सा टूट पड़ा था। अदिति अटवाल अपनी इसी परेशानी का हल निकलवाने की उम्मीद से सुनील के पास आई थी। अदिति के पिता,सुदर्शन अटवाल, रमाकांत को जानते थे और इसी कारण अदिति पहले रमाकांत और उसके कहने पर आखिरकार सुनील के पास आई थी।

अटवाल परिवार की परेशानी का सबब शिव हरि जालान था। वह कभी सुदर्शन अटवाल का दोस्त हुआ करता था जिससे सुदर्शन अटवाल ने अपने ग़ुरबत के दौर में कुछ पैसा उधार लिया था। उसी पैसे से सुदर्शन अटवाल ने अपना व्यापार खड़ा किया था। अब जालान का कहना था कि चूँकि पैसे उस वक्त उसने दिए थे तो उसका भी व्यापार में हिस्सा था और उसे वो हिस्सा चाहिये था। उसकी अटवाल परिवार को धमकी थी कि अगर ऐसा न हुआ तो वह एक ऐसी बात जगजाहिर कर देगा जिससे अटवाल परिवार की इज्जत तो मिटटी में मिल ही जाएगी साथ में उनकी दौलत भी जब्त हो जाएगी। जालान के मुताबिक अब उनकी भलाई इसी में थी कि वो रकम अदा कर दें।

अदिति ने यह बात अभी तक सुदर्शन अटवाल से छुपाकर रखी थी। अपने पिता की तबियत खराब होने के कारण उन्हें इस मुद्दे से अदिति से दूर ही रखा था। उसे खुद ही इस मुसीबत का हल ढूँढना था।

चेतन चानना एक प्राइवेट जासूस था जो इस सौदे में बिचौलिये का किरदार निभाने वाला था। चानना का काम यह सुनिश्चित करना था कि जालान और अटवाल के बीच हुई ये सौदेबाजी इमानदारी से हो और एक बार पैसा मिलने के बाद ब्लैक मेलिंग का यह सिलसिला हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाये।

अदिति यह नहीं चाहती थी कि वो इस ब्लैक मेल के आगे घुटने टेके और इस कारण सुनील उसकी आखिरी उम्मीद था।

आखिर जालान के पास ऐसा क्या था जिसने अटवाल परिवार को तिगनी का नाच नचा दिया था? क्यों अदिति और उसके परिवार के बाकी लोग पुलिस के पास नहीं जा रहे थे? आखिर बिचौलिया इस सौदे में क्यों मुकर्रर किया गया था?

यही सब प्रश्न सुनील के मन में उमड़ घुमड़ रहे थे। और उसने अदिति की मदद करने का फैसला कर लिया था। लेकिन फिर एक कत्ल हो गया और पहले से पेचीदा मुद्दा और पेचीदा हो गया।

अब सुनील को इस  बात की जड़ तक पहुँचना ही था क्योंकि किसी की जान का सवाल था।

क्या सुनील बात की जड़ तक पहुँच पाया? क्या वह अटवाल खानदान को इस मुसीबात से निजाद दिला पाया? आखिर कत्ल किसका हुआ था और क्यों?

इन सब प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़ने के पश्चात ही मिलेंगे।

मुख्य किरदार
सुनील चक्रवर्ती - ब्लास्ट नामक अखबार का चीफ रिपोर्टर 
रमाकांत मल्होत्रा - यूथ क्लब का मालिक और सुनील का दोस्त 
सुदर्शन अटवाल - राजनगर में रहने वाला एक व्यापारी 
अदिति अटवाल - सुदर्शन अटवाल की बड़ी बेटी 
शैलेश अटवाल - सुदर्शन अटवाल का बेटा
शिव हरि जालान - वो व्यक्ति जो कि अटवाल परिवार को ब्लैक मेल कर रहा था 
चेतन चानना - एक प्राइवेट डिटेक्टिव जो इस मामले में बिचौलिया का किरदार निभा रहा था 
प्रभुदयाल - पुलिस इंस्पेक्टर 
अर्जुन, अंकुर - सुनील के जूनियर 
जौहरी - रमाकांत के लिए काम करने वाला एक व्यक्ति जो रमाकांत के कहने पर सुनील की मदद करता था 
आशीष खन्ना - एक और प्राइवेट डिटेक्टिव
अमृता अटवाल - अदिति की छोटी बहन 
जतिन कपूर - अमृता का बॉय फ्रेंड
रेणु - ब्लास्ट की रिसेप्शनिस्ट
नारंग, शकील अहमद - पुलिस के फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट
डॉक्टर वालिया - इंदिरा गांधी हस्पताल का एक डॉक्टर जिसने लाश का पोस्ट मार्टम किया था 
सृष्टि अबरोल - चेतन चानना की पड़ोसी 

बिचौलिया सुनील श्रृंखला का 116 वाँ उपन्यास है। यह सुनील के दूसरे उपन्यासों की तरह एक मर्डर मिस्ट्री ही है। अक्सर मर्डर मिस्ट्री में खून पहले हो जाता है और उसकी तहकीकात कहानी का नायक पूरे कथानक में करता है। यह उपन्यास इस बात में जुदा है कि इस 368 पृष्ठों के उपन्यास में कत्ल 110 पृष्ठ गुजरने के बाद होता है। इससे पहले तक सुनील ब्लैक मैलिंग के केस से परिवार को निजाद दिलाने की कोशिश करता दिखता है। 

चूँकि यह सुनील श्रृंखला का उपन्यास है तो इसमें सुनील सीरीज के सारे तत्व मौजूद हैं। सुनील की स्मार्ट टॉक और कारिस्तानियाँ पाठकों का मनोरंजन करती हैं। सुनील और रमाकांत के बीच की जुगलबंदी है जो कि मनोरंजक है। और सुनील और प्रभुदयाल के दांव पेंच है जो पढ़ने में आनन्द आता है। सुनील के जूनियर अर्जुन और अंकुर के किरदार भी रोचक हैं। कहना पड़ेगा वो भी सुनील के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। यह हिस्सा देखिये:

"तो सुनील के साथ तुम भी तारे गिनने का काम करते हो?"
"यस सर। लेकिन इसके अलावा मैं और भी कई काम बेहतरीन तरीके से कर लेता हूँ।"
"और काम क्या?"
"ऊँटनी का दूध निकाल लेता हूँ, स्कूटर के टायर में मुँह से हवा भर लेता हूँ, मुक्की मार के प्याज़ तोड़ लेता हूँ, बस में बिना टिकट सफर कर लेता हूँ..."
"अर्जुन!"- सुनील डपट कर बोला।
अर्जुन के जोशोखरोश को ब्रेक लगी।

मेरे ख्याल से अगर पाठक साहब चाहें तो एक आध थ्रिलर तो इन दोनों किरदारों(अर्जुन और अंकुर) को लेकर लिख सकते हैं। पाठक के रूप में मैं जरूर ऐसे उपन्यास को पढ़ना चाहूँगा।

मिस्ट्री के तौर पर  उपन्यास बेहतरीन है। आखिर तक इस बात का रहस्य बरकरार रहता है कि कातिल कौन है? पाठक साहब ने कथानक इस तरह से लिखा है कि कई लोगों के ऊपर शक जाता है और पाठक वही सोचने पर मजबूर हो जाता है जो कि लेखक चाहता है वो सोचे। यह चीजें एक उम्दा मर्डर मिस्ट्री के लिए जरूरी होती हैं और इस कारण यह एक बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री है।

उपन्यास में चेतन चानना का किरदार भी है। वह बिचौलिया का किरदार निभा रहा है। किरदार के रूप में चेतन चानना रोचक है लेकिन जब मैंने शीर्षक पढ़ा था उपन्यास के कथानक का मेरे मन में कुछ और खाका खिंचा था। मुझे लगता है उपन्यास का शीर्षक कुछ और होता तो बेहतर रहता। 

थ्रिलर उपन्यास पढ़ते वक्त पाठक हर वक्त यह जानने के लिए व्याकुल रहता है कि अगले पृष्ठ में क्या होगा? यह व्याकुलता एक तरह से पाठक को पन्ने पलटने को मजबूर कर देते है। इधर कत्ल किसने किया इस बात की तो जिज्ञासा मन में रहती है लेकिन कथानक में उस तत्व की कमी दिखती है जो पाठक को पन्ने पलटते जाने के लिए मजबूर कर सके। कहानी में कसावट की कमी भी झलकती है। इस कसाव की कमी का मुख्य कारण मुझे सुनील की बहसें भी लगती हैं। वो डॉक्टर वालिया से, शकील अहमद से, सृष्टि अबरोल से लम्बी लम्बी बहसें करते दिखता है जो कि मेरे हिसाब से छोटी हो सकती थी। मुझे लगता है उन्हें खींचा गया था। अगर वो बहसें छोटी होती तो कुछ पृष्ठ कम होते और कहानी में कसाव रहता। यह एक अच्छी मर्डर मिस्ट्री तो है लेकिन एक पेज टर्नर(एक के बाद एक पन्ने पलटते जाने पर मजबूर कर देने वाला उपन्यास) नहीं है। कहानी में कसावट की कमी के अलावा मुझे कुछ कमी नज़र नहीं आई। 

सुनील इस उपन्यास में आखिर में अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए एक ऐसा काम करता है जो मुझे उसके किरदार के अनुरूप नहीं लगा। ये काम सुधीर करता तो मुझे इतनी दिक्कत नहीं होती लेकिन सुनील को ये काम करते देखना थोड़ा अटपटा था। 

आखिर में यही कहूँगा उपन्यास ने मेरा भरपूर मनोरंजन किया।अगर आप एक उम्दा मर्डर मिस्ट्री पढ़ना चाहते हैं तो आपको इसे जरूर पढ़ना चाहिए।


मेरी रेटिंग:4/5

अगर आपने बिचौलिया पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे टिपण्णी के माध्यम से जरूर बताइयेगा।

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10 Comments
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  1. रोचक समीक्षा जो उपन्यास पढ़ने को आकृष्ट करती है ।

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    1. जी शुक्रिया मैम। अपराध साहित्य विशेषकर मर्डर मिस्ट्री साहित्य की मेरी पसंदीदा विधा है। अफ़सोस ये है हिन्दी में कम ही लेखक इस विधा में अच्छा लिखते हैं। पाठक साहब उन्हीं अच्छा लिखने वाले लेखकों में से एक हैं।

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  2. आपने बिल्कुल सटीक तथ्य परख समीक्षा लिखी है
    कहानी और तेज रफ्तार हो सकती थी। इसके बावजूद भी यह बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री है।

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    1. जी मर्डर मिस्ट्री तो बेहतरीन थी।हाँ,अगर कथानक में कसाव होता तो सोने पर सुहागा हो जाता। शुक्रिया।

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  3. आपकी समीक्षा से पूरी तरह सहमत हूँ मैं विकास जी । कथानक का कैनवास इतना बड़ा नहीं है जितना विस्तार इसे दे दिया गया है । आपने ठीक कहा है कि लम्बी-लम्बी बहसों की कोई ज़रूरत नहीं थी । इससे रहस्य अच्छा होने के बावजूद यह एक ढीला-ढाला उपन्यास बनकर रह गया । यह बात मैंने पाठक साहब को भी बताई थी । आजकल मैं इसी को फिर से पढ़ रहा हूँ (सुनील का प्रशंसक होने के कारण उसकी सीरीज़ के उपन्यास मैं कई बार पढ़ लेता हूँ) । वस्तुपरक एवम् निष्पक्ष समीक्षा के लिए आपका अभिनंदन ।

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  4. बढ़िया समीक्षा है आपकी | मैंने लास्ट इयर पढ़ा था यह नॉवेल| वैसे मुझे बढ़िया लगा था की सुनील ने लास्ट में चानना के साथ जो किया |

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    1. लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। सुनील की वो हरकत उसके मूलभूत किरदार से मैच नहीं कर रही थी इस कारण मुझे अजीब लगा। उपन्यास तो मुझे पसंद आया था।

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  5. Loved the hindi review flavor here!! So great to read such well researched as well as deep reviewed stuff on such helpful blogs. Thanks for sharing
    Blogging Generation

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