नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

रिवेंज - एम इकराम फरीदी

उपन्यास दिसम्बर 16, 2018 से दिसम्बर 21, 2018 के बीच पढ़ा गया 

संस्करण विवरण
फॉर्मेट : पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या: 254
प्रकाशक: रवि पॉकेट बुक्स 
कीमत: 80 रूपये (एम आर पी)
श्रृंखला : सुभाष चन्द कौशिक #3

रिवेंज - एम इकराम फरीदी
रिवेंज - एम इकराम फरीदी


पहला वाक्य:
रात के ग्यारह बज रहे थे। 

अंशु को मरे हुए चार महीने हो चुके थे। एक एक्सीडेंट में उसकी मृत्यु हो गई थी। लेकिन अब चार महीने बाद अचानक से उसकी रूह सक्रिय हो गई थी ।

अंशु की रूह सबसे पहले अपने चचेरे भाई मोनू को दिखी थी। उसने अपने ताऊ,सुधीर, के पूरे परिवार का सफाया करने का बीड़ा उठाया था। अंशु के भूत का कहना था कि उसकी और उसके पिता की मौत के पीछे उसकी ताई जी,ज्योतिका, का हाथ था और अब उनसे बदला लेकर ही उसकी आत्मा को शांति नसीब होनी थी। इसके लिए उसने अपने चचेरे भाई बहनों को मौत के घाट उतारने का फैसला किया था। 

क्या सचमुच एक अतृप्त आत्मा का साया मोनू के परिवार के ऊपर पड़ा था? क्या अंशु की आत्मा का वजूद असल में था या ये किसी की खुराफात थी? क्या सचमुच अंशु के परिवार की बर्बादी के पीछे ज्योतिका का हाथ था? क्या इस साजिश में अंशु की माँ मैना भी शामिल थी? 

ऐसे ही कई प्रश्न सबके दिमाग में उठ रहे थे। पुलिस का रवैया भी सुधीर और ज्योतिका को जब संतुष्ट नहीं कर पाया तो उन्होंने सुभाष चन्द्र कौशिक,जो कि एक नामचीन प्राइवेट जासूस था, को इस मामले की जांच का जिम्मा दिया। 

क्या सुभाष चन्द्र कौशिक इस रहस्यों से पर्दा उठा पाया? क्या वो इस अतृप्त आत्मा के पीछे का राज उजागर कर पाया?

यह सब जानने के लिए आपको इस उपन्यास को पढ़ना होगा।


मुख्य किरदार
मोनू - एक चौदह वर्षीय लड़का
सुधीर - मोनू के पापा
ज्योतिका - मोनू की माँ
चेतना - मोनू की बड़ी बहन जो कि अट्ठारह वर्ष की थी
शैलेश - मोनू का बड़ा भाई जो कि बीस वर्ष का था
प्रेमवती - मोनू की दादी
मैना - मोनू की चाची
प्रकाश - मैना का पति
अंशु - मैना का बेटा जो कि चार महीने पहले एक सड़क दुर्घटना में मर गया था
उग्रसेन - वह इंस्पेक्टर जो इस केस को हैंडल कर रहा था
अब्दुल करीम - सब इंस्पेक्टर और उग्रसेन का साथी
सुभाष चन्द कौशिक - एक प्राइवेट जासूस
देवेश - मैना का भाई
सूरज - कौशिक का असिस्टेंट
मंजू - एक मिमिक्री आर्टिस्ट
अनुज - एक अट्ठारह वर्ष का लड़का

रिवेंज जैसा कि  नाम से ही जाहिर है एक बदला प्रधान उपन्यास है। एक आत्मा किसी परिवार से बदला ले रही है। वह परिवार के किसी सदस्य को चिन्हित करके उसकी मौत का समय निर्धारित कर देती है। इसके बाद उस आत्मा को रोकने की जद्दोजहद शुरू होती है। आत्मा कई बार सफल भी होती है। आत्मा और इनसान की लड़ाई में कौन जीतता है? क्या सचमुच आत्मा का अस्तित्व है? अगर नहीं तो इन कृत्यों को किस तरह अंजाम दिया जा रहा है? ये सब प्रश्न ही पाठक को उपन्यास के पन्ने पलटने पर मजबूर कर देते हैं।

रिवेंज के माध्यम से डिटेक्टिव सुभाष चन्द कौशिक से मेरी यह दूसरी मुलाकात थी। इससे पहले मैं उससे ट्रेजेडी गर्ल में मिला था। सुभाष चन्द कौशिक एक तैंतीस वर्षीय नौजवान है। वह एक प्राइवेट जासूस है जो अपनी टीम के साथ केस सोल्व करता है। इस उपन्यास में भी परिवार सुभाष चन्द कौशिक को इस प्रेत जाल के रहस्य को सुलझाने के लिए बुलाता है। आगे वह क्या करता है ये तो आप उपन्यास पढ़कर ही जान पाएंगे।

उपन्यास में इंस्पेक्टर उग्रसेन का भी किरदार है जो इस मामले की छानबीन सरकारी तौर पर कर रहा है। यह एक रोचक किरदार है। इसके काफी हिस्से मुझे रोचक लगे विशेषकर आत्मा के साथ ग़ालिब की बातचीत का हिस्सा मजेदार था। कथानक में भी इसका अपना हाथ है। लेकिन यह ज्यादातर कौशिक के सामने दबा हुआ महसूस होता है क्योंकि इसकी उपन्यास में कुछ और ही खिचड़ी पक रही होती है।

उपन्यास में बाकी के सभी किरदार कथानक पर फिट बैठते हैं।

कहानी ऐसी है कि इसमें एक किरदार परिवार में होने वाली दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी लेता रहता है लेकिन पुलिस और डिटेक्टिव को ये पता लगाना होता है कि क्या वह सच बोल रहा है। और अगर बोल रहा है तो वो ऐसा कैसे कर सकता है? क्या उसका कोई साथी है? अगर साथी है तो वो कौन है? और वारदातों को कैसे अंजाम दे पा रहा है।

कहानी में रहस्य आखिर तक बना रहता है। मुझे हल्का हल्का आईडिया तो हो गया था कि कातिल कौन होगा लेकिन अपने शक को सही साबित करने के लिए तो मुझे आखिर तक पढ़ना ही था। आखिर में कौशिक ने ऐसी बात कह दी थी जिससे मेरा शक कन्फर्म तो हो गया था।

लेखक ने एक दो जगह रेड हेरिंग का प्रयोग भी किया है जो कि रोचक है। रेड हेरिगं जासूसी उपन्यासों में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है जिसमें कुछ संदिग्ध किरदारों का प्रयोग कथानक में होता है। वो संदिग्ध हरकतें करते है जिससे पाठक के फोकस में वो आ जाते हैं और असल कातिल से लेखक पाठक के फोकस को हटा देता है। इसमें भी ऐसा किरदार है।

उपन्यास की भाषा की बात करूँ तो उपन्यास की भाषा में कई जगह उर्दू के शब्दों का प्रयोग होता है उदाहरण के लिए हस्बेमामूल, खदसा, साँस खारिज होना इत्यादि। इससे व्यक्तिगत तौर पर मुझे दिक्कत नहीं होती है लेकिन अगर ऐसे शब्द, जो आम बोलचाल की भाषा में प्रचलित नहीं है फिर चाहे वो हिन्दी के हों या उर्दू के, को लेखक प्रयोग में लाता है तो उसे फुट नोट लगाकर उसका मतलब नीचे दे देना चाहिए।  इससे पाठको को अर्थ समझने में आसानी होती है। उनका शब्दकोश बढ़ता है, वो कुछ सीखता है। उपन्यास में अंग्रेजी शब्द भी हैं। एक आध जगह वैरी इंटरेस्टिंग को वैरी इंटरेस्टेड लिखा है। ये चीज शायद ट्रेजेडी गर्ल में भी थी। थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है।

उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो उपन्यास में कई जगह दोहराव दिखता है। यह दोहराव प्रसंगों में नहीं है लेकिन छोटी छोटी बातों में है। जैसे पृष्ठ 84 में कौशिक मैना के भाई का पता पूछता है ज्योतिका उसे बताती भी है लेकिन फिर पृष्ठ 96 में वो यही बात दोबारा पूछता है और ज्योतिका दोबारा इस बात को बताती है। शुरुआत में भी ये दोहराव एक दो जगह मैंने नोट किया था। ये सब हट सकते थे। कहानी में कई प्रसंग मुझे थोड़ा अनावश्यक लगे। इसमें दो ऐसे किरदारों का प्रेम प्रसंग है जो कि कनफ्लिक्ट पैदा करते हैं। पाठक सोचता है कि इससे कहानी पर क्या असर पड़ेगा। जब सैया भये कोतवाल तब डर काहे का कि सूक्ति चरित्रार्थ तो न होगी।  लेखक ने इसी कनफ्लिक्ट के लिए इसे इस्तेमाल किया होगा लेकिन इसका विवरण कम हो सकता था क्योंकि इससे उपन्यास की गति में फर्क पड़ता है।

इसके अलवा उपन्यास में एक दो बात मुझे खटकी थी। उपन्यास में एक किरदार अपनी बाइक लेकर एक ट्रेक्टर से भिड़ गया था और उसकी मौत हो गई थी। ट्रेक्टर की लाइट नहीं जल रही थी।  लेकिन यह प्रसंग पढ़कर मेरे मस्तिष्क में जो बात सबसे पहले कौंधी वह यह थी कि माना ट्रेक्टर की लाइट नहीं जल रही थी लेकिन बाइक वाले की तो जल रही होगी। उसे तो देखकर चलना चाहिए था। और अगर उसकी खुद की लाइट ठीक नहीं थी तो फिर उसकी मौत दुर्घटना ही थी। खराब लाइट वाले को तो चौकन्ना होकर चलना चाहिए। कई बार इस बात का जिक्र आता है और इस घटना को साजिश बताई जाती है लेकिन ये दलील कोई भी किरदार नहीं देता। मैं सोच रहा था कि कोई तो देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

उपन्यास में दूसरी बात जो मुझे खटकी वो ये थी कि जब मैं एक ऐसी तस्वीर देखूँ  जिसमें से केवल एक किरदार को मैं जानता हूँ। वो तस्वीर देखकर मैं ठिठकता हूँ और मुझे पता चलता है कि उस तस्वीर का केस से कुछ नाता हो सकता है तो ये स्वाभाविक है कि मैं उस तस्वीर में मौजूद हर किरदार का पता लगवाऊंगा। लेकिन कौशिक ये नहीं करता है। अगर यह आम तस्वीर होती तो फिर भी बात थी लेकिन यह तस्वीर इस तरह से रखी हुई थी कि साफ़ पता चलता है कि उस व्यक्ति के लिए ये बहुत जरूरी है। ऐसे में तीसरे किरदार के विषय में मन में सवाल उठाना तो बनता है। उपन्यास में कोई ये सवाल नहीं करता है।

तीसरी बात जो अजीब लगी वो ये थी कि आखिर में कातिल  कहता है कि वो अपनी साथी के घर में गया था। उस वक्त उसका इरादा कत्ल का नहीं था तो वो चोरी छुपे तो नहीं गया होगा। फिर वो बाकी सदस्यों के नज़र में क्यों नहीं आया था। संयुक्त परिवार में अगर कोई आता है तो हलचल होती है। बाकी रिश्तेदारों से भी वो मिलता है। फिर रिश्तेदारों ने उसे बाद में क्यों नहीं पहचाना।

यह सब बातें थी जो उपन्यास पढ़ते हुए मेरे मन में उभरी थी। आपका इस विषय में क्या कहना है? अपनी राय से मुझे अवगत करवाईयेगा।

अंत में यही कहूँगा कि फरीदी जी ने एक अच्छी रहस्य कथा लिखी है। रहस्य अंत तक बरकरार रहता है। कई जगह अनावश्यक लम्बे विवरण और प्रेम प्रसंग से गति बाधित होती है, कुछ एक जगह दोहराव हैं। यह सब हटाकर अगर कथानक को चुस्त रखा जाता तो और बेहतर बन सकता था। मेरे हिसाब से कथानक से बीस तीस पृष्ठ आसानी से हटाये  जा सकते थे। कथानक के अनावश्यक खिंचाव के बनिस्पत अंत में छोटी सी कहानी डालकर पृष्ठ संख्या उतनी करी जा सकती है जितने की दरकार थी। इससे रचना पर कम से कम कोई असर नहीं पड़ता है।  मेरा अपना ख्याल है कि रहस्यकथा जितनी सुगठित और टू द पॉइंट रहती हैं वो उतना बेहतर काम करती है।

सुभाष चन्द कौशिक से तो मैं दोबारा मिलूँगा ही लेकिन उग्रसेन से भी मैं दोबारा मैं मिलना चाहूँगा।

उपन्यास आपको कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे अवगत करवाईयेगा।

मेरी रेटिंग : 2.5/5

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एम इकराम फरीदी

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© विकास नैनवाल 'अंजान'
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8 Comments
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  1. शानदार समीक्षा विकास भाई ।

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  2. यह उपन्यास मैंने पढा, काफी रोचक है। हां, उपन्यास में एक दो जगह गलतियाँ है।
    फरीदी जी के उपन्यासों की कथा मुझे काफी रोचक लगती है।
    आपकी समीक्षा संतुलित है।
    धन्यवाद।

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    1. गुरप्रीत जी उपन्यास वाकई रोचक और रहस्य से भरपूर है। फरीदी जी मौलिक विषयों पर लिख रहे हैं। यह अच्छी बात है। उनके सुभाष चन्द कौशिक श्रृंखला के उपन्यास मुझे पसन्द आते हैं। बाकी उपन्यास भी मैं जल्द ही पढूँगा।

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  4. आपकी समीक्षा इतनी बढ़िया होती है कि मन अपने आप संबंधित पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रेरित हो उठता है ।

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    1. बस यही कोशिश रहती है मीना जी। हार्दिक आभार।

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