नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बहूरूपिया नवाब - इब्ने सफ़ी

रेटिंग: 3/5
उपन्यास 6 सितम्बर 2018 को  पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 140
प्रकाशक:हार्पर हिन्दी
आईएसबीएन : 9788172238902/8172238908
श्रृंखला : इमरान #3


पहला वाक्य:
मूडी एक रोमांटिक अमरीकी नौजवान था। 

मूडी एक अमेरिकी नौजवान था। वह इधर व्यापार के सिलसिले में रहता जरूर था लेकिन उसके आने का मकसद कुछ और था। मूडी को लगता था कि पूरब अभी भी रहस्य से भरा हुआ है। ऐसे रहस्य जिसमें राजा महाराजा हैं,साजिशे हैं और नौजवान हीरो हैं जो शहजादियों को इन साजिशो और मुसीबतों से बचाते हैं। यही सोच उसे यहाँ लाई थी और ऐसे रहस्यमय किस्से का हिस्सा होना उसकी दिली इच्छा थी।

ऐसे में जब एक दिन एक रहस्यमय लड़की देर रात को उसकी गाड़ी में आकर बैठ गई तो मूडी को लगा कि उसकी बरसों पुरानी तम्मना पूरी होने वाली है। लड़की डरी हुई थी। उसके पीछे कुछ लोग पड़े हुए थे और लड़की के अनुसार उसकी जान को खतरा था।

वहीं जबसे वो लड़की मूडी के घर पर आई थी तभी से कुछ रहस्यमय लोग उसके घर के इर्द गिर्द देखे जाने लगे थे।

आखिर कौन थी यह लड़की? उसके पीछे कौन और क्यों पड़ा हुआ था?  उसकी मूडी की कार में आना क्या केवल एक संयोग था? मूडी के घर के इर्द गिर्द मंडराने वाले  शख्स कौन थे?

वहीं शहर में एक दूसरी तरह की खबर सुर्ख़ियों में थी। दस साल पहले नवाब हाशिम,जो कि शहर के एक मशहूर रईस थे, की किसी ने  उनके घर में घुस कर हत्या कर दी गई थी और केस कभी सुलझा नहीं था। रिश्तेदारों की माने तो वह हत्या नहीं आत्महत्या थी। अब दस साल बाद वही नवाब हाशिम जिंदा लौट आये थे।

नवाब हाशिम के भतीजे की माने तो यह कोई बहुरूपिया था जो उसका चाचा बनकर नवाब हाशिम की दौलत हथियाना चाहता था। इसी गुत्थी ने शहर के गुप्तचर विभाग को भी परेशान किया हुआ था।

आखिर सच क्या था? क्या यह व्यक्ति ही नवाब हाशिम था? अगर ऐसा था तो दस साल पहले किसकी मौत हुई थी? और उस कत्ल के पीछे कौन था?

इमरान, जिसे खुद गृहमंत्री जी ने गुप्तचर विभाग में एक अच्छा ओहदा दिया था, इसी केस पर काम कर रहा था। वहीं दूसरी और मूडी भी उस रहस्यमय सुंदरी के मामले में इमरान की मदद चाहता था?

क्या वो इन रहस्यों से पर्दा उठा पाया?

मुख्य किरदार:
मूडी - एक अमेरकी नौजवान और व्यवसायी
दुर्दाना - एक रहस्यमय सुन्दरी जो मूडी की कार में आ गई थी
इमरान - गुप्तचर विभाग का अफसर
रहमान साहब - इमरान के पिता और डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन के चीफ
फ़ैयाज़ - इमरान का दोस्त और सुप्रीटेन्डेंट
नवाब हाशिम - शहर एक महशूर रईस
नवाब साजिद - हाशिम का भतीजा
हुदहुद - इमरान का एक मातहत
मुईनुद्दीन - दुर्दाना के पिता के दोस्त जो हकीम भी  थे
मिर्ज़ा नसीर - शहर के दूसरे रईस
सफदर खान - एक व्यक्ति जो दुर्दाना के घर रहस्यमयी तौर पर जाने की कोशिश कर रहा था
शमशाद - इमरान का मातहत

'बहुरूपिया नवाब' इमरान श्रृंखला का तीसरा उपन्यास है।  इमरान एक नौजवान है जो कि विदेश से पढ़कर भारत आया था। उसके पिता खुफिया विभाग के मुखिया हैं और उनकी एक ही परेशानी है। उन्हें लगता है कि इमरान एक आला दर्जे का मूर्ख है। इमरान भी खुद को अहमक दिखाने की कोशिश लगातार करता रहता है। उसके काम करने का यही तरीका है कि लोग उसे बेवकूफ समझे। और इसलिए वो बेवकूफाना हरकत करते रहता है।

मैंने इमरान श्रृंखला के दो उपन्यास पढ़े हैं। सबसे पहले वाला 'खौफनाक इमारत' और आखिरी वाला 'सांपों का शिकारी'। इन दोनों ही उपन्यासों में मुझे इमरान का किरदार पसंद नहीं आया था। इसके बनिस्पत जासूसी दुनिया श्रृंखला के फरीदी मुझे ज्यादा पसंद आया था। इमरान चूँकि खुद को आला दर्जा का बेवकूफ दिखाने की कोशिश करता है तो उन उपन्यासों में कई बार मुझे इमरान ओवरएक्टिंग करता दिखा था और इससे कई बार उससे चिढ भी हो गई थी। मुझे लगने लगा था कि इमरान का किरदार शायद मेरे लिए नहीं बना है।
लेकिन बहुरूपिया नवाब ने एक बार फिर मुझे इमरान श्रृंखला के उपन्यासों को उठाने के लिए प्रेरित कर रहा है।

उपन्यास में दो रहस्य हैं और धीरे धीरे दोनों के ऊपर से पर्दा उठता है। इमरान की जासूसी देखने को मिलती है। साथ ही उपन्यास में कई मजाकिया प्रसंग है जिसे पढ़कर मजा आ जाता है। ऐसा नहीं है कि इमरान इधर खुद को बेवकूफ दिखाने की कोशिश नहीं करता है। वो ऐसा करता रहता है लेकिन मुझे इस बार वो अति नहीं लगती। इस बार उसने खुद के लिए मातहत भी अपने जैसे चुने हैं जिनकी रिपोर्ट भी पढ़ते हुए हँसा देती हैं।
इमरान अपने एक मातहत को सलाह देते हुए कहता भी है:

...लेकिन मेरी यह बात हमेशा याद रखना कि दूसरों को उल्लू बनाने का साइंटिफिक तरीका यह है कि ख़ुद उल्लू बन जाओ समझे!

उपन्यास के बाकी किरदार कहानी के अनुरूप हैं। मूडी के सीन बरबस ही हँसी ला देते हैं। मैं उसे दूसरे उपन्यासों में भी देखना चाहूँगा।

उपन्यास की कहानी को देखें तो जिस समय यह लिखी गई थी उस हिसाब से कहानी अच्छी है। रहस्य अंत तक बरकरार रहता है जो कि अच्छी बात है। हाँ, कहानी जिस हिसाब से घुमाई है वो ऐसी है कि क्लू से उन तक नहीं पहुँचा जा सकता था। पढेंगे तो आप जान पाएंगे कि मैं क्या कह रहा हूँ।

अगर आज के हिसाब से उसकी तुलना करेंगे तो कहानी साधारण लगेगी लेकिन उस वक्त के हिसाब से पढ़ेंगे तो कहानी का लुत्फ़ ले पाएंगे। उपन्यास के मजाकिया प्रसंग कथानक को और मनोरंजक बना देते हैं। उपन्यास मुझे पंसद आया। उपन्यास छोटा है तो एक ही सिटींग में आसानी से पढ़ा जा सकता है।

उपन्यास के कुछ रोचक अंश

उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अब से पाँच सौ साल पहले की दुनिया में साँस ले रहा हो और उसकी हैसियत किसी शहज़ादी के बॉडीगार्ड की-सी हो। वह उसके दुश्मनों से जंग कर रहा हो। नशे में तो था ही, उसने सचुमुच ख्याली शहज़ादी के ख़याली दुश्मनों से जंग शुरू कर दी। उसका पहला घूँसा दीवार पर पड़ा, दूसरा मेज़ पर और तीसरा उसके सिर पर। ऐसा ग़ुल-ग़पाड़ा मचा कि सारे नौकर इकट्ठा हो गये।

'हाय! तो तुम भी यही साबित कर रहे हो कि वह धोखेबाज़ है...'
'अब तुम बकवास न करो, वरना गोली मार दूँगा!'

'गोली मार दो! मगर मैं यक़ीन नहीं करूँगा कि वह धोखेबाज़ है। वह बहार की हवाओं की तरह हौले-हौले चलती है...उसके गालों से सुबह होती है।...उसके बालों में शामें अंगड़ाइयाँ लेती हैं!'

'देखो मेरा मतलब यह था कि तुम दफ्तर में भी अपने उल्लूपन से बाज़ नहीं आते।'
'यह कहाँ लिखा है कि इस दफ्तर में उल्लुओं के लिए कोई जगह नहीं है।'
'ओ बाबा, खत्म भी करो, मैं भी तुमसे एक मसले पर गुफ्तगू करना चाहता था।'

'मेरा ख्याल है कि मेरा उल्लूपन भी निहायत अहम है..क्योंकि इसी उल्लूपन की वजह से मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ।'

'देखिये, एक बात और है!" साजिद ने कहा...'मगर आप मेरा मज़ाक उड़ायेंगे।'
'क्या यह कोई परदार चीज है?' इमरान ने पूछा।
'क्या चीज़!' साजिद  उसे हैरत से देखने लगा!
'यही मज़ाक!'
'नहीं तो...'साजिद के मुँह से ग़ैर इरादी तौर पर निकल गया।

'भला फिर कैसे उड़ेगा?' इमरान सिर झुका कर दुःखी अंदाज में बड़बड़ाया।



अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसे लगा? उपन्यास के प्रति अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। इमरान श्रृंखला के उपन्यासों को हार्पर हिंदी ने ओमनीबस निकाल कर प्राकशित किया है। यह दो भागों में प्रकाशित है और इमरान श्रृंखला के सात उपन्यास इन किताबों में मौजूद हैं। आप इन्हें निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
इमरान सीरीज भाग एक(खौफनाक ईमारत,चट्टानों में आग, बहरूपिया नवाब,खौफ का सौदागर)
इमरान सीरीज भाग दो(जहन्नुम की अप्सरा,नीले परिंदे,साँपों के शिकारी)

इमरान श्रृंखला के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं:
इमरान सीरीज
इब्ने सफी के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
इब्ने सफ़ी
दूसरे हिन्दी पल्प उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी पल्प फिक्शन
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2 Comments
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  1. अच्छी समीक्षा है | पहले आउट ऑफ़ स्टॉक थे हार्पर ने दुबारा रीप्रिंट किया है जल्द ही लूँगा |

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    1. जी सही कहा। अब तो ओम्नीबस भी निकाल दिया है। चार किताबों में जासूसी दुनिया और इमरान सीरीज के सभी पंद्रह उपन्यास आ जायेंगे।

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