नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

जैक द क्लॉक राइडर - ख़ुशी सैफी

रेटिंग : 2.5/5
उपन्यास जून 17,2018 से जून 18,2018 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 120
प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन: 9788193584507




पहला वाक्य:
वो आदमी जल्दी जल्दी अपनी फाइल समेट रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे उसके पास बहुत थोड़ा वक्त बचा है। 

प्रोफेसर कैन चौदह वर्ष पहले अपने प्रयोगशाला से रहस्यमयी तरीके से गायब हो गये थे ।  उनका सहायक भी ये बताने में असमर्थ था कि उस दिन प्रयोगशाला में क्या हुआ? वक्त के साथ सभी ने इस घटना को भुला दिया था।

लेकिन चौदह साल बाद दोबारा इस घटना को याद किया गया।

जैक एक सत्रह वर्षीय लड़का है। उसकी अपनी ज़िन्दगी है, स्कूल है, दोस्त हैं और स्कूल से जुड़ी परेशानियाँ हैं। वो उस वक्त अपने जीवन में व्यस्त था जब उसे अपने पिता, प्रोफेसर कैन, के विषय में एक ऐसे तथ्य का पता चला जिसने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। उसे पता चलता है कि अपने पिता के विषय में वो जो समझता था वो सच नहीं है। उसके पिता जीवित थे लेकिन रहस्यमयी परिस्थितियों में गायब हो गये थे।

अब उसका एक ही मकसद है। अपने पिता को ढूँढना।

क्या वो अपने पिता को तलाश कर पाया? आखिर उसके पिता कहाँ चले गये थे? अपने पिता की इस तलाश में जैक को किन किन परेशानियों  सामना करना पड़ा?

ऐसे ही कई सवालों का जवाब ये उपन्यास आपको देगा।


मुख्य किरदार :
प्रोफेसर कैन - एक वैज्ञानिक
एडिसन - कैन का सहायक
जैक - एक सत्रह वर्षीय लड़का
क्रिस्टीन - जैक की दोस्त
डेनियल - जैक का सहपाठी जो जैक से चिढ़ता था
प्रोफेसर हेनरी - जैक के साइंस टीचर
बेल्गोसील - एक बोलता पेड़
लुई - एक बोलता शेर जो अलग अलग रूप ले सकता था
कैथलीन - क्रिस्टीन की माँ
मैडोना - एक जादूगरनी
पार्कर - एक महान योद्धा

ख़ुशी सैफी जी की 'जैक-द क्लॉक राइडर' एक फंतासी लघु उपन्यास है। इस शैली के उपन्यासों की हिन्दी में कमी रही है तो ये उपन्यास इस कमी को थोड़ा कम करता है। अक्सर फंतासी उपन्यासों के भी कई सब टाइप होते हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रसिद्द क्वेस्ट फंतासी होता है जिसमे हमारे उपन्यास के नायक को अक्सर किसी सफर पर निकलना पड़ता है। इस सफ़र का कुछ मकसद होता है और इस सफर के दौरान वो कई अलग अलग दुनियों से होकर, कई मुसीबतों को पार करके आखिर में अपने मकसद को पा लेने में सफल होता है। जैक द क्लॉक राइडर भी एक तरीके से इसी क्वेस्ट फंतासी की श्रेणी में रखा जा सकता है।

120 पृष्ठों का ये उपन्यास कथानक के मामले में अपने आप में पूरा है। आप पढ़ना शुरू करते हैं तो घटनाओं को पढ़ते जाते हैं। उपन्यास पठनीय है और पढ़ते हुए उपन्यास में चलते दृश्य आपके मस्तिष्क पर उभरते चले जाते हैं। उपन्यास में मौजूद चित्र भी इसमें मदद करते हैं । उपन्यास रोचक है और कथानक में आते घुमाव और किरदारों के विषय में पता चलती नई बातें पाठको का रुझान उपन्यास पढ़ने में बनाये रखते हैं।

उपन्यास में अच्छी बातें हैं तो कुछ ऐसे बिंदु भी हैं जो मुझे थोड़े अटपटे लगे और कुछ ऐसे बिंदु भी थे जो मुझे उपन्यास की कमी लगी। तो उन्ही के विषय में नीचे लिख रहा हूँ।

ख़ुशी जी ने ये उपन्यास न्यूबेंटन नाम की एक पश्चिमी देश के किसी शहर में बसाया है। ये मुझे व्यक्तिगत तौर पर अटपटा लगा। इसमें कोई बुराई नहीं है और मैं ये भी मानता हूँ कि ये अधिकार पूर्णतः लेखिका का है कि वो किस क्षेत्र की कहानी कहना चाहती हैं। फिर भी उपन्यास के किरदार भारतीय परिवेश के होते तो शायद भारतीय बच्चों को उनसे जुड़ाव ज्यादा महसूस होता। यही कहानी अगर भारतीय किरदारों के साथ लिखी जाती तो कहानी में शायद ही कुछ फर्क पड़ता। इसलिए इन किरदारों को चुनने के पीछे का कारण मेरे समझ में नहीं आया। हाँ ये केवल मेरी राय है। इसे उपन्यास की कमी न समझा जाए।

उपन्यास में जैक और क्रिस्टीन खलनायिका मैडोना से लड़ते हैं। मुझे लगा मैडोना से लड़ने के पहले उन्हें जितनी मुसीबतों का सामना करना चाहिए था उतने का सामना नहीं करना पड़ा। वो आसानी से पार्कर तक पहुँच गये। फिर जैक को कैन तक पहुँचने से पहले भी इतनी ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। थोड़े तिलस्म और होते। थोड़ी लड़ाईयाँ और होती तो मजा आता। जैक और क्रिस्टीन कुछ गलतियाँ करते। उनसे कुछ सीखते। कुछ साथी खोते। एक फंतासी उपन्यास में ये सब होना ही चाहिए। ऐसा नहीं है कुछ नहीं था लेकिन जो था उससे ज्यादा किया जा सकता था। लेकिन शायद पृष्ठ संख्या को एक सीमा तक रखने के चक्कर में नहीं किया गया।

उपन्यास की कहानी काफी हद तक क्रोनिकल्स ऑफ़  नार्निया श्रृंखला के पहले उपन्यास द लायन द विच एंड द वार्डरॉब से  प्रेरित लगती है। अगर आपने क्रोनिकल्स ऑफ़ नार्निया श्रृंखला का ये उपन्यास पढ़ा है तो आप समझ जायेंगे कि मैं किन समानताओं की बात कर रहा हूँ। अगर नहीं पढ़ा है तो दोनों पढ़े। कहानी दोनों अच्छी हैं।

उपन्यास में चित्रों के इस्तेमाल से इसकी पठनीयता बढ़ी है। हालांकि कई जगह ऐसा लगता है कि चित्रों की बनावट थोड़ी अच्छी हो सकती थी। और कई जगह चित्रों की प्लेसमेंट भी कहानी के अनुरूप नहीं है। पृष्ठ 93 में जैक और क्रिस्टीन एक घड़ी के अन्दर जाते दिखते हैं लेकिन ये घटना कहानी में पहले ही घटित हो चुकी होती है। जहाँ ये चित्र है उधर वो किसी दूसरी मुसीबत से जूझ रहे होते हैं।

उपन्यास में जिस फंतासी दुनिया का निर्माण ख़ुशी जी ने किया है। उसके विषय में पाठक के रूप में मुझे काफी कम जानकारी मिलती है। केवल उतनी जितनी कहानी के लिए जरूरी है (ये  कहानी के लिए तो अच्छा है लेकिन एक फंतासी पाठक के रूप में मुझे थोड़ा असंतुष्ट करता है। )। ये उपन्यास की कमी नहीं है ये मेरी अपनी अपेक्षा है। मैं इस दुनिया के विषय में और जानना चाहता हूँ। अक्सर जब आप फंतासी किताब पढेंगे तो पाएंगे या तो वो श्रृंखला बद्ध होती है या उसके उपन्यास काफी मोटे होते हैं। ये इसलिए जरूरी होता है कि लेखक एक नई दुनिया की रचना करता है। एक ऐसी दुनिया जिसका अपना इतिहास होगा, अपने क़ानून(प्राकृतिक और वो जो उस दुनिया के जीवों द्वारा बनाये हुए होते हैं) होंगे, अपनी कुछ विशेषताएं होंगी। उदाहरण के लिए इस उपन्यास में बोलते शीशे हैं, बोलते पेड़ हैं, ऐसे जानवर हैं जो रूप परिवर्तित कर सकते हैं यानी आधे इनसान बन सकते हैं और कभी पूर्ण जानवर। तो दुनिया रचने वाले  की कोशिश रहती है पाठक उस दुनिया से पूर्ण परिचित हो जिसमें वो पाठकों को ले जाना चाहता है ताकि वो कहानी का पूर्ण रूप से लुत्फ़ उठा सके। इसलिए फंतासी उपन्यास विशेषकर जो एकल उपन्यास होते हैं वो काफी मोटे होते है। लेकिन इधर ऐसा विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है।  इस उपन्यास को पढ़ते समय पाठक के रूप में मेरे मन में कई सवाल उत्पन्न होते हैं। जैसे  कि इस दुनिया की रचना कैसे हुई? आखिर इस दुनिया का इतिहास क्या है? इस दुनिया का भविष्य क्या है? मैडोना से पहले क्या था? उसने कैसे राज स्थापित किया। उसने शक्तियाँ कैसे हासिल की।  शीशमहल के विभिन्न शीशों से और कौन कौन सी दुनिया में जाया जा सकता है? शीशमाहल की स्थापना कैसी हुई? ऐसे ही अनगिनत सवाल हैं जिनमें से कुछ का जवाब तो मुझे मिलना चाहिए था।


उम्मीद है लेखिका इस विषय के ऊपर सोचेंगी और इस दुनिया से जुड़े अन्य उपन्यास भी लिखेंगी। इससे एक फायदा ये होगा कि यह श्रृंखला अपनी प्रेरणा की छाया से बाहर आ सकेगा और  दूसरा फायदा ये कि पाठको को एक नई दुनिया में विचरने का मौका मिलेगा।


अंत में इतना कहूँगा कि ख़ुशी जी बधाई की हकदार हैं कि उन्होंने हिंदी में फंतासी बाल उपन्यास लिखा है। हिंदी में वैसे ही बाल उपन्यासों की कमी है और फंतासी में तो शायद ये नामात्र ही हों। आशा करता हूँ ऐसे और  फंतासी उपन्यास (बच्चों और वयस्कों के लिए) उनकी कलम से निकलते रहेंगे। एक और उम्मीद यह है कि इस उपन्यास में रची दुनिया से जुड़ी अन्य कहानियाँ वो पाठको के समक्ष रखेंगी।

बाल पाठको को ये उपन्यास पसंद आना चाहिए। अगर आप व्यस्क हैं तो एक बार उपन्यास पढ़ सकते हैं। फंतासी का शौक रखते हैं तो आपको लग सकता है कि उपन्यास जल्दी निपटा दिया गया क्योंकि अक्सर फंतासी पढ़ने वाले वृद्ध कथानक के आदि होते हैं।

मेरे राय में उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है।

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा? अपने विचार से मुझे अवगत जरूर करवाईयेगा।

किताब पेपरबैक और किन्डल दोनों ही संस्करणों में उपलब्ध है। आप इसे निम्न लिंक्स से मँगवाकर पढ़ सकते हैं:
पेपरबैक
किंडल

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6 Comments
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  1. विकास जी मैंने आपके हर वाक्य को पढ़ा। शूक्रिया बहुत अच्छा बताया आपने। जिसे उम्मीद है अगली किताब में हमे जरूर मदद मिलेगी।
    और इस बात को मैं मानता हूँ बाल उपन्यास हिंदी में न मात्रा है इसी के तहत मैंने ऐसे लेखकों को खोजना शुरू किया था जो ऐसा लिखते। खुशी जी ने बढिया काम किया और वाकई मैं भी उइसे अगले पार्ट का बोल चुका हूँ जिसके लिए उन्होंने कहा था जरूर सोचेंगे। श्यायद उम्मीद है उस दुनिया की तब पूरी गाथा बयान हहो।

    बात करता हूँ न्यूबेंटन सिटी का। हमे एक ऐसे शहर का नाम चुनना था जो रियल में न हो। चूंकि लेखिका ने चरित्र ही पश्चिमी बनाये थे तो वैसा ही नाम सोचा गया। इंग्लिश नाम रखने के पीछे उनकी अपनी राय थी और वो इसके अंग्रेज़ी भाग पर भी वर्क करना चाहती है।

    और उम्मीद करते है सूरज पॉकेट बुक्स से आपको और ऐसी किताबें पढ़ने को मिले। हौसला बढ़ाने के लिए दिल से धन्यवाद। 😊😊😊

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    1. शुक्रिया, मीत जी। बाल साहित्य की तरफ जोर देकर सूरज पॉकेट बुक्स एक अच्छा कदम उठा रही है। इससे पाठकों की नई पौध तैयार होगी जिसे कि अक्सर नज़रन्दाज कर दिया जाता था। आने वाले उपन्यासों का इतंजार रहेगा।

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  2. बाल साहित्य के इंटरेस्ट के चलते मैंने अपनी किताब तक डिले की थी। और अब जो किताबे आने वाली है। वो कुछ जैक जैसी भी हैं। 150 पेज़ होंगे इस बार। बाल साहित्य में शुभानन्द सर का कहना है 100 पेज़ ही रखा जाए। और हम इस बार इस बात पर आये की बल साहित्य में भी पेज़ बढ़ाना चाहिए। सो अगली किताब 80 के दो भागों में न आकर 150 से 160 पेज़ को आ रही है। बहुत बढ़िया किताब है मजा आएगा। 😊😊👌👌

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  3. यह उपन्यास बहुत रोचक है। मैंने कहानी रूप‌में फतांसी साहित्य भी पढा है लेकिन उपन्यास के रूप में यह पहला है। कहानी रोचक और पठनीय है।
    हां, कहानी भारतीय किरदारों के साथ होती तो आनंद और भी ज्यादा आता और बच्चे भी ज्यादा जुड़ाव महसूस करते।
    लेखिका महोदया को धन्यवाद।

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    1. सही कह रहे हैं,आप। उम्मीद है ऐसे उपन्यास हिंदी में और आएंगे।

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