इस बार दीवाली में घर गया तो अपने साथ तीन हॉरर कॉमिक्स भी साथ लेकर गया। ये कॉमिक्स कुछ महीनों पहले खरीदे थे और फिर दराज में डाल दिये थे। सोचा इसी बहाने घर में पढ़ भी लिया जाएगा। वरना इधर तो रखे रखे पता नहीं कितना वक्त गुजर गया होता।
खैर तीनो कॉमिक राज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित थ्रिल हॉरर सस्पेंस श्रृंखला के हैं। अब ज्यादा वक्त न जाया करते हुए सीधे कॉमिक्स पर आते हैं।
आर्टवर्क : 1/5
कथानक : 2/5
संस्करण विवरण
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 32
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
कथानक : राजा, चित्र : सुरेंद्र सुमन, संपादक : मनीष गुप्ता
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 32
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
कथानक : राजा, चित्र : सुरेंद्र सुमन, संपादक : मनीष गुप्ता
आईएसबीएन : 9788184917437
तारी, रुस्तम,बन्ने खा, काले और विक्की का नाम शहर के नामी बदमाशों में शुमार होता था। जब मध्य रात्रि में वो पाँचों शहर के कब्रिस्तान के निकट पहुँछे तो इसका कोई ण् कोई कारण होना आवश्यक था।
आखिर क्यों आये थे वो कब्रिस्तान में?? किस चीज की तलाश थी उन्हें? क्या उन्हें वो मिली?? उनके साथ इधर क्या हुआ?
आखिर क्यों आये थे वो कब्रिस्तान में?? किस चीज की तलाश थी उन्हें? क्या उन्हें वो मिली?? उनके साथ इधर क्या हुआ?
चीखता कब्रिस्तान थ्रिल हॉरर सस्पेंस श्रृंखला के उन कॉमिकस में थी जो मेरे पास पड़ी थी। कहानी एक दोस्तों के समूह की है जो कि एक कब्रिस्तान में जाते हैं और उनकी हरकतों से कब्रिस्तान में कुछ ऐसी शक्तियाँ जीवित हो जाती है जो केवल मौत का तांडव करना जानती हैं। वो क्यों कब्रिस्तान में मध्य रात्रि में घुसे इसका पता कहानी के अंत में पता लगता है। एक अंदाजा तो मुझे पहले हो गया था लेकिन फिर इसकी पुष्टि तो कॉमिकस के खत्म होने के बाद ही हुई। आखिर में आत्माएँ जिस आसानी से काबू में आ गयी वो थोड़ा अचरच की बात थी। फिर जिस चीज की इन पाँचों को तलाश थी वो इन्हें मिल जाती है लेकिन अपने ऊपर हुए हमले के कारण ये उसे छोड़ देते हैं लेकिन अंत में उस चीज का कहीं उल्लेख नहीं है। आखिर उंसके साथ क्या हुआ?? ये सब बातें भी कॉमिक में बताना चाहिए था। कहानी औसत है। एक बार पढ़ी जा सकती है लेकिन कुछ विशेष नहीं है कि दोबारा इसे पढ़ा जाए।
एक चित्रकथा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा चित्रांकन होता है। इस मामले में भी कॉमिक कमतर ही है। आर्टवर्क और अच्छा हो सकता था। खुद ही देखिये।
कहानी और चित्रांकन के कई पहलुओं पर काम किया जा सकता था। अभी ऐसा लगता है जैसे लेखक को एक आईडिया आया और उन्होंने उससे जुडी सबसे सरल कहानी पेश कर दी। और पेंसिलेर को भी ज्यादा पैसे नहीं दिये गए तो उसने भी कहानी के साथ जाती कुछ आड़ी टेढ़ी लकीरे कागज पर उकेर कर पाठकों के सामने पेश कर दी।
इसे एक बार पढ़ा जा सकता है लेकिन न भी पढेंगे तो कुछ विशेष नहीं गवायेंगे।
एक चित्रकथा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा चित्रांकन होता है। इस मामले में भी कॉमिक कमतर ही है। आर्टवर्क और अच्छा हो सकता था। खुद ही देखिये।
चित्रांकन है या मज़ाक |
कहानी और चित्रांकन के कई पहलुओं पर काम किया जा सकता था। अभी ऐसा लगता है जैसे लेखक को एक आईडिया आया और उन्होंने उससे जुडी सबसे सरल कहानी पेश कर दी। और पेंसिलेर को भी ज्यादा पैसे नहीं दिये गए तो उसने भी कहानी के साथ जाती कुछ आड़ी टेढ़ी लकीरे कागज पर उकेर कर पाठकों के सामने पेश कर दी।
इसे एक बार पढ़ा जा सकता है लेकिन न भी पढेंगे तो कुछ विशेष नहीं गवायेंगे।
संस्करण विवरण
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 56
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
लेखक : तरुण कुमार वाही, परिकल्पना : विवेक मोहन, पेन्सिलिंग : अशोक भड़ाना , इंकिंग : भूपेंद्र वालिया, सुलेख : विजय कुमार, संपादक : मनीष गुप्ता
आईएसबीएन: 9789332412552
कहते हैं प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। आशिको ने भी अपने इश्क के लिए क्या नहीं किया है। किसी ने जंग लड़ी है, कोई यमराज तक से लड़ा है और किसी ने कत्ल ही किया है। अभिजीत भी अपनी पत्नी रूपक को इसी जुनूनी तरीके से चाहता था। रूपक को कुछ भी हो ये उसे बर्दाश्त नहीं था। लेकिन फिर उसे पता चला कि उसकी कुंडली में दोष था। उसकी कुंडली के मुताबिक उसकी पत्नी ने उससे शादी के तीन महीने के पश्चात ही मौत का ग्रास बन जाना था। और ये अटल सत्य था। वो रूपक से अलग भी नहीं रह सकता था और उसे भी मंजूर नहीं था कि रूपक को उसकी वजह से कोई नुकसान हो।
फिर उसके मन मे एक योजना ने जन्म लिया। इस योजना के अंतर्गत उसे अपनी मुसीबत से छुटकारा मिल जाना था।
तो क्या थी ये योजना? और इसका क्या असर हुआ? क्या अभिजीत और रूपक दोबारा एक हो सके??
'तेरी मौत तेरे सामने' हॉरर थ्रिल सस्पेंस श्रृंखला की कॉमिक है। कहानी ठीक ठाक है और पठनीय है। लोग बाग अपने स्वार्थ के लिए क्या क्या नहीं कर देते ये कहानी दर्शाती है। अक्सर अखबार ऐसी खबरों से पटा पड़ा रहता है कि फलाने के अपने आशिक के साथ मिलकर अपने पति को मौत के घाट उतार दिया या किसी ने अपनी पत्नी को दूसरी औरत के लिए मौत के घाट उतार दिया। इसी लाइन पे ये कहानी भी है।
हाँ, कहानी में एक जगह कुछ क्राइम ब्रांच के अफसर अभिजीत से मिलने आते हैं। जिस प्रकार वो अपना परिचय देते हैं वो हास्ययस्पद है। एक अपने को फर्राटे बताता है और एक अपने को बाज। फिर नामों के कारण भी वो बताते हैं। मुझे हँसी आ गयी थी पढ़ते हुए। ऐसा लग रहा था कि जैसे पात्रों को भी पता है वो कॉमिक बुक में हैं। वरना जिस संजीदा परिस्थिति में वो मिले थे उसमे ऐसी बात कौन करता है?
कॉमिक की कहानी मुझे एक फ़िल्म की कहानी जैसी लगी थी। उसमे भी लड़के की कुंडली में लिखा होता है कि उसकी बीवी कुछ दिनों में मर जाएगी। लेकिन वो हॉरर फिल्म नहीं थी। शायद अमोल पालेकर थे उसमे। अच्छी फिल्म थी वो।
ये एक अच्छा कॉमिक है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। अभी आप कॉमिक पढ़ते हुए बता सकते हैं कि आगे क्या होगा। थोड़ा ट्विस्ट एंड टर्न्स होते तो ज्यादा मज़ा आता। खैर, कॉमिक की कहानी पठनीय है, आर्ट टिपिकल राज जैसी है।
3) दलदल के नीचे 1.5/5
संस्करण विवरण:
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 32
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
लेखिका : मीनू वाही, संपादक : मनीष चंद्र गुप्त, चित्रांकन : सुरेंद्र सुमन
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 32
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
लेखिका : मीनू वाही, संपादक : मनीष चंद्र गुप्त, चित्रांकन : सुरेंद्र सुमन
आईएसबीएन : 9788184917598
वो पाँच दोस्त थे - चैंटा, बाली, डीडी,रोहन और अनु। जंगल में उन्होंने बोरेबन्द लाश को डाला तो उन्होंने सोचा कि उन्होंने लाश से छुटकारा पा लिया था।
लेकिन ये उनकी गलतफहमी थी। अगले ही दिन उन्हें लाश को ठिकाने लगाते तस्वीर मिली और फिर मिलनी शुरू हुई चिट्ठियाँ। इन चिट्ठियों को भेजना वाले ने अपने नाम की जगह दलदल के नीचे लिखा था। उन चिट्ठियों में उनके राज को राज रखने के एवज में कुछ माँगे की गई थी।
आखिर वो पाँचों किसकी लाश ठिकाने लगा रहे थे? दलदल के नीचे के नाम से कौन उन्हें चिट्ठियाँ भेज रहा था? उसकी माँगे क्या थी?
कहानी शुरू करते ही सबसे पहले जो बात एक पाठक के रूप में आप रजिस्टर करते हैं वो है इस चित्रकथा में प्रयोग किये निम्न कोटि के चित्रांकन का। चित्रों को देखकर लगता है जैसे किसी बच्चे द्वारा इन्हें बनाया गया हो। चित्र सारे टेढे मेढ़े से हैं और पढ़ने पर लगता ही नहीं कि प्रोफेशनल वर्क हो।
कॉमिक्स में प्रयुक्त निम्न कोटि का चित्रांकन |
कहानी ठीक ठाक है। एक बार पढ़ी जा सकती है। आर्टवर्क थोड़ा अच्छा होता तो सही रहता। कहानी में एक इंस्पेक्टर है लेकिन उसने जिस तरह से खेल खेला वो जमता नहीं है। उसने सबूत हाथ से निकल जाने दिया और नाटक करना ठीक समझा। ये बात कुछ जमी नहीं। दलदल के नीचे का राज ठीक ठाक था। वो कहानी के अनुरूप ठीक है। कहानी में एक किरदार की उंगली और किरदार की जीभ दलदल के नीचे माँगता है। उसकी इन विशेष माँगों के पीछे के कारण का क्या औचित्य था ये मुझे पता नहीं लग सका। ऐसा पाँच में से दो के साथ ही क्यों किया। करना था तो पाँचों के साथ करते। इनके ऊपर रोशनी डाली जाती तो ठीक रहता क्योंकि इसके बिना कहानी अधपकी सी लगती है।
अगर आपने इन तीनों कॉमिक्स को पढ़ा है तो अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
तीनो कॉमिक्स राज कॉमिक्स की साईट पे उपलब्ध हैं। अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो उधर से इन्हें मंगवा सकते हैं।
चीखता कब्रिस्तान- राज कॉमिक्स लिंक , अमेज़न लिंक
तेरी मौत तेरे सामने - राज कॉमिक्स लिंक , अमेज़न लिंक
दलदल के नीचे - राज कॉमिक्स लिंक , अमेज़न लिंक
कॉमिक्स की कीमतों को लेकर मुझे थोड़ी परेशानी है। तेनो के ऊपर स्टीकर लगा है जैसा कि पिछली बार पढ़ी कॉमिक्स में हुआ था। तो ये भी पुराने माल पे नया स्टीकर चस्पा कर बेचने का मामला है। पाठक इसमें कुछ नहीं कर सकता।
लूटना प्रकाशक का काम है और लुटना पाठक की किस्मत।
अगर आपने इन तीनों कॉमिक्स को पढ़ा है तो अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
तीनो कॉमिक्स राज कॉमिक्स की साईट पे उपलब्ध हैं। अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो उधर से इन्हें मंगवा सकते हैं।
चीखता कब्रिस्तान- राज कॉमिक्स लिंक , अमेज़न लिंक
तेरी मौत तेरे सामने - राज कॉमिक्स लिंक , अमेज़न लिंक
दलदल के नीचे - राज कॉमिक्स लिंक , अमेज़न लिंक
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बचपन में काॅमिक्स खूब पढी थी। बांकेलाल तो आज भी मेरा पसंदीदा पात्र है।
ReplyDeleteसमय बदला और काॅमिक्स पढना कम हो गया।
लेकिन वर्तमान में राज काॅमिक्स का जो आर्टवर्क है वह मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता।
एक और काॅमिक्स का स्तर कम हो गया और दूसरी रूचि भी, इसलिए काॅमिक्स नहीं पढ पाया। लेकिन बांके लाल की कुछ पुरानी काॅमिक्स पिछले दिनों पढी और बचपन याद आ गया।
आपने तीनों काॅमिक्स पर अच्छा लिखा है।
धन्यवाद ।
जी मैं तो अभी भी कॉमिक्स पढ़ लेता हूँ। मुझे हर तरह का साहित्य पसंद है इसलिए साहित्य की इस विधा को भी पढता हूँ। हाँ, हिंदी में परिपक्व पाठकों के लिए इस विधा में सामग्री का आभाव है जबकि अंग्रेजी में ये प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है। मैं अक्सर अंग्रेजी का ही रुख करता हूँ। हिंदी कभी कभी देख लेता हूँ।
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