नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

खूनी चट्टान - एस सी बेदी

रेटिंग : 3/5
उपन्यास 15 सितम्बर 2017 से 20 सितम्बर 2017 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
प्रकाशक : राजा बाल पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या : 45

पहला वाक्य :
वह खूबसूरत औरत थी।

फिल्म निर्माता यशपाल चोपड़ा अपनी पत्नी मधु से बेइन्तहा मुहब्बत करता था। जब मधु की अचानक मृत्यु हुई तो मानो दुःख का पहाड़ उसके ऊपर टूट पड़ा। डॉक्टरों के अनुसार मृत्यु का कारण दिल का दौरा पड़ना था।

लेकिन बीमा कम्पनी के लोगों को डॉक्टरों की बात पर यकीन नहीं था। उन्हें दाल में कुछ काला होने का अंदेशा था। मधु का तीस लाख का बीमा था और यशपाल चोपड़ा की माली हालत जर्जर थी। ऐसे में उसकी मौत उनके मन में शक उत्पन्न कर रही थी। भले ही पुलिस और डॉक्टरों ने मौत प्राकृतिक बताई थी लेकिन अपने मन में उत्पन्न शक को दूर करने के लिए बीमा कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर अतुल घोष ने राजन-इकबाल की मदद लेने का फैसला किया था।

क्या सचमुच मधु की हत्या की गयी थी? राजन की तहकीकात का क्या नतीजा निकला?

इधर कुछ दिनों से यशपाल चोपड़ा और उसके जानकार लोगों के साथ अजीब हरकतें होने लगी थी। उसके बंगले में लोगों द्वारा मधु के भूत को देखने के दावे किये जा रहे थे। इन दावों को करने वाला बंगले का चौकीदार और नौकर थे। जब अपनी नयी फिल्म के हीरो को उसने बंगले में ठहराया तो उधर ऐसी हरकतें होने लगी जिन्हें अलौकिक ही कहा जा सकता था।

क्या सचमुच बंगले में मधु की आत्मा का साया था? और अगर हाँ तो उसकी आत्मा क्या चाहती थी?

मुख्य किरदार
राजन इकबाल - सीक्रेट एजेंट 
इकबाल - सीक्रेट एजेंट और राजन का पार्टनर 
शोभा - सीक्रेट एजेंट और राजन की टीम की सदस्य 
सलमा - सीक्रेट एजेंट, इकबाल की प्रेमिका और राजन की टीम की सदस्य 
यशपाल चोपड़ा - एक फिल्म निर्माता 
अशोक अरोड़ा - यशपाल का दोस्त और पार्टनर 
मधु चोपड़ा - यशपाल की पत्नी 
लता - एक लडकी जो फिल्म की हीरोइन बनने आई थी लेकिन अब गुमशुदा थी
इंस्पेक्टर बलबीर - इंस्पेक्टर जिसने मधु चोपड़ा की मृत्यु के केस को देखा था 
भोलू - राजन के यहाँ काम करने वाला 
अतुल घोष - भारत इंश्योरेंस कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर 
अच्छन मियाँ उर्फ़ जीरोकुमार - एक बड़े जागीरदार का लड़का जिसे हीरो बनने की सनक सवार थी 
अनिल वीरमानी - यशपाल का पार्टनर और दोस्त 
दीनू - यशपाल के बंगले में काम करने वाला कर्मचारी 
पूनम - एक अदाकारा जिसे यशपाल ने जीरो कुमार के फिल्म की हीरोइन के रूप में चुना था

राजन इकबाल श्रृंखला से मैं कुछ ही वर्षों पहले वाकिफ हुआ हूँ। जब छोटा था तो कॉमिक्स पढता था लेकिन उसके बाद बाल उपन्यासों का रुख करने की बजाय सीधे उपन्यासों की तरफ बढ़ गया था। इसका एक कारण ये भी था कि मेरे वक्त में बाल उपन्यासों का चलन इतना नहीं था और न साहित्य के प्रति घर में किसी का इतना लगाव था। इसलिए अंग्रेजी के बाल साहित्य से भी महरूम रहा था। इसलिए मुझे बाल उपन्यास, फिर चाहे वो अंग्रेजी में हों या हिंदी में, पढने में मज़ा आता है। इससे मै अपने बचपन में खोये साहित्य की भरपाई भी करता हूँ। लेकिन अब अग्रेजी के बाल उपन्यास तो आसानी से मिल जाते हैं लेकिन राजन इकबाल श्रृखंला के पुराने उपन्यास अब मिलना तो टेड़ी खीर है।

हाँ, सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा इस श्रृंखला को दोबारा जीवित करने की कोशिश की गयी और ये सराहनीय कदम है। मैं उम्मीद करता हूँ वो इस श्रृंखला के पुराने उपन्यासों को मार्किट में नये रूप में लायेंगे जिससे नयी पीढ़ी के बच्चे भी इनका लुत्फ़ उठा सकें। एस सी बेदी जी दोबारा लिखने के क्षेत्र में सक्रीय हो चुके हैं जो कि अच्छी बात है। उनसे यही गुजारिश करूँगा कि अब तक मैंने इक्के दुक्के जितने भी राजन इक़बाल के उपन्यास पढ़े हैं उनमे रहस्य इतना जटिल नहीं होता है। मुझे उपन्यास में नायक के बताने से पहले ही रहस्य का अंदाजा हो गया था। हो सकता है ये बाकि उपन्यासों में ऐसा न हो लेकिन मैंने वो नहीं पढ़े हैं। इसलिए छोटा मुँह बड़ी बात कहना चाहूंगा कि जो नये उपन्यास लिख रहे हैं उनमें इस बिंदु पर ज्यादा फोकस करें। वैसे मैंने २०१७ में प्रकाशित उनके उपन्यासों को मंगवा लिया है जिनके विषय में जल्द ही पढ़कर ब्लॉग में डालूँगा तो बने रहियेगा।

अब प्रस्तुत उपन्यास पर आते हैं। खूनी चट्टान एक नावेलेट है। पैंतालीस पृष्ठों का ये उपन्यास पढने में मुश्किल से आपको एक डेढ़ घंटा भी नहीं लगेगा। कहानी चूंकि बाल उपन्यास है तो ज्यादा जटिल नहीं है। उपन्यास के मध्य तक पहुँचने पर काफी हद तक मुझे कहानी के रहस्य का मुझे पता चल गया था। हाँ, इक़बाल और सलमा के बीच के नोक झोंक के दृश्य मनोरंजक थे और उन्होंने मुझे गुदगुदाया। जीरो कुमार की करिस्तानियाँ भी मज़ेदार थी। आखिर में कुछ हॉरर दृश्य है जो पढ़ना मेरे लिए रोमांचक था। वैसे दृश्य उपन्यास में और होते तो मज़ा आ जाता। बाकी के किरदार उपन्यास के हिसाब से फिट बैठते हैं।

हाँ, बीच में राजन और शोभा के बीच में एक डायलाग है जिससे कहानी काफी साफ हो जाती है इसलिए मेरे हिसाब से वो डायलॉग नहीं होता तो कहानी के लिए बेहतर रहता। इधर डायलॉग नहीं बताऊँगा क्योंकि अगर आपने इसे नही पढ़ा तो बताने से उपन्यास पढने के मज़े के कम होने के आसार है। उपन्यास जिसने पढ़ा है उसे अंदाजा होगा मैं किस विषय में बात कर रहा हूँ।

अगर आप जटिल रहस्यमयी उपन्यास पढ़ चुके हैं तो आपको उपन्यास रहस्य के हिसाब से औसत लग सकता है। लेकिन सलमा इक़बाल की नोक झोंक और आखिरी में मौजूद कुछ हॉरर दृश्यों के लिए उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। मैं एक दस बारह साल के बच्चे की राय इस उपन्यास के विषय में जानना चाहूँगा।

उपन्यास की स्कैन्ड कॉपी मुझे अन्तरजाल में भ्रमण करते हए मिल गयी थी लेकिन मैं आशा करता हूँ कि इस श्रृंखला के पेपरबेक मुझे जल्द ही पढने को मिलेंगे और मैं दोबारा उसमे से इस उपन्यास को पढने का आनंद ले पाऊंगा। हाँ, उपन्यास की कॉपी मुझसे नहीं मांगिएगा। अगर पढना ही है तो नेट में सर्च कर सकते हैं, मिलने के काफी संभावनाएं हैं। 

उपन्यास अगर आपने पढ़ा है तो उसके विषय में अपनी राय टिपण्णी बक्से में जरूर दीजियेगा।
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2 Comments
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  1. मुझपे भी राजन इक़बाल के काफी बाल पॉकेट बुक्स है मुझे काफी बढ़िया लगते है इनके उपन्यास हा रहस्य ज्यादा रहस्य नहीं रहता है क्यों की ये बच्चों के लिए थी जबकि अब हम बड़े हो गए है तो आसानी से माइंड कैच कर लेता है। पर बच्चों के हिसाब से काफी बढ़िया है ये उपन्यास साथ ही इक़बाल की झक तो मजा आ जाता है और उनके बीच जो बाते होती है काफी प्यारी लगती है हँसी मजाक होता है उसका भी अपना ही मजा है

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  2. मुझपे भी राजन इक़बाल के काफी बाल पॉकेट बुक्स है मुझे काफी बढ़िया लगते है इनके उपन्यास हा रहस्य ज्यादा रहस्य नहीं रहता है क्यों की ये बच्चों के लिए थी जबकि अब हम बड़े हो गए है तो आसानी से माइंड कैच कर लेता है। पर बच्चों के हिसाब से काफी बढ़िया है ये उपन्यास साथ ही इक़बाल की झक तो मजा आ जाता है और उनके बीच जो बाते होती है काफी प्यारी लगती है हँसी मजाक होता है उसका भी अपना ही मजा है

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