नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

अनोखी रात - सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : 3/5
उपन्यास 1 नवम्बर 2016 से नवम्बर 2016 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : ई-बुक
प्रकाशक : डेली हंट

देवेन्द्र पराशर इतिहास का प्रोफेसर था जो कि शिमला में पढाता था।  वो शिमला में रहता था और शिमला की खूबसूरती के जैसे ही उसका वैवाहिक जीवन भी खूबसूरत और मोहब्बत भरा था। अपने तीन महीने की शादी में उसे अपनी बीवी से मुहब्बत बढ़ती ही जा रही थी।

बस कमी थी तो इसकी की देवेंद्र को अपनी बीवी माया के इतिहास के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। उसके लिए वो माया की पुरानी ज़िन्दगी मायने भी नहीं रखती थी। लेकिन कहते हैं न आप अपने इतिहास को छोड़ सकते हैं लेकिन वो आपको कभी नहीं छोड़ता। वो आख़िरकार आपको पकड़ ही लेता है।

माया का इतिहास भी उसके ऐन पीछे खड़ा था। और फिर कुछ ऐसा हुआ कि देवेंद्र को माया के इतिहास का सामना पड़ा। 

अब माया गायब है और देवेंद्र को यकीन है कि उसकी पिछली ज़िंदगी में ही उसके गायब होने का राज़ छुपा है। जैसे जैसे माया के इतिहास की परतें उतरती जायेंगी, वैसे वैसे वो माया को ढूँढ़ने के करीब पहुँचता जायेगा।

देवेंद्र को ये जल्दी करना होगा क्योंकि पुलिस के मुताबिक उसने माया का क़त्ल करके उसको गायब कर दिया था?

क्या देवेंद्र अपनी बीवी को ढूंढ णया? क्या देवेंद्र अपने को बचा पाया? आखिर कौन थी माया? किधर चली गयी थी वो? और क्या माया का इतिहास उसके वर्तमान और भविष्य को बर्बाद कर देगा?


सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने कई श्रृंखलाओं की रचना तो की है लेकिन इसके इलावा कई थ्रिलर्स भी रचे हैं। उनके वे उपन्यास थ्रिलर्स की श्रेणी में रखे जाते हैं जिनके किरदार उन्हीं उपन्यासों के लिये रचे गये और उन्हें आगे इस्तेमाल करने का पाठक साहब का कोई इरादा नहीं रहता है। अनोखी रात भी एक ऐसा ही उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार सन १९८० में प्रकाशित हुआ था।

उपन्यास पढ़ने में मुझे बहुत मज़ा आया। उपन्यास के नायक एक प्रोफेसर देवेन्द्र पराशर हैं। वो अपनी बीवी की मुहब्बत में गिरफ्त व्यक्ति है जिसे ऐसी प्यार करने वाली बीवी मिली है जिसकी लोग कल्पना ही कर सकते हैं। इसी कारण वो उससे वो सवाल नहीं करता है जिससे उसकी बीवी को तकलीफ हो।

देवेन्द्र पराशर एक परिक्व इंसान भी है। वो जिसे तरीके से अपनी छात्रा मनीषा का केस हैंडल करते है उससे ये बात साफ पता चलती है। ये उपन्यास आज से 36 साल पहले छपा था और जैसी प्रतिक्रिया पराशर की उस वक्त मनीषा की तरफ थी वैसे आज के वक्त में भी कई लोगों की नहीं होगी।

पराशर जब अपने को खतरे में महसूस करता है तो डरता नहीं है बल्कि उसके मुकाबले के लिये तत्पर रहता है। लेकिन क्योंकि वो इस तरीके के खतरों से निपटने के लिये ट्रेनड नहीं है तो अक्सर उसे असफलता का मुँह देखना पड़ता है। वो कई गलतियाँ भी इस दौरान करता है जो कि किरदार के हिसाब से न्यायोचित लगती हैं। उसकी यही खासियत उसे जीवंत बनाती है। वो फ़िल्मी हीरो की तरह नहीं है जो वक्त पड़ने पर दस पचास लोगों से लड़ जाए।

उपन्यास पढ़ते हुए मुझे स्टेफेन किंग की कहानी अ गुड मैरिज याद आ रही थी। उसका विषय भी यही है कि एक पति और पत्नी एक दूसरे को कितना कम जानते हैं। इधर भी यही होता है कि देवेन्द्र माया से प्यार तो बहुत करता है लेकिन उसके विषय में कुछ जानता नहीं है। इसके एक बात के इलावा वो कहानी इस उपन्यास से एक दम जुदा है।

उपन्यास में बाकी किरदार कहानी के अनुरूप गढ़े हुए थे और वो इसके साथ न्याय करते हैं। हाँ, छाया का किरदार बड़ा अटपटा लगा था। उपन्यास में ट्विस्ट काफी कम है। जो भी रहस्य है वो माया के अतीत का है जो कि जल्द ही खुल जाता है। उसके बाद कैसे देवेन्द्र अपनी बीवी को वापस लाने की कोशिश करता है ये ही पाठक को कहानी से बाँधे रखता है।

उपन्यास में पाठक साहब ने स्य्म्बोलिसम का भी प्रयोग किया है। माया जब गायब होती है तो शिमला का मौसम बदल जाता है। उधर तूफ़ान आता है, बर्फ बारी होती है यानी की एक नोइरिश मौसम हो जाता है। उपन्यास के अंत तक जैसे जैसे देवेन्द्र और माया के जीवन में बदलाव होते हैं वैसे वैसे मौसम भी बदलता जाता है।  इसी उपन्यास में मैंने ये बात नोटिस करी। क्या आप पाठक साहब के रचे दूसरे उपन्यासों को जानते हैं जिसमे उन्होंने ये प्रयोग किया है? अगर हाँ, तो टिपण्णी में जरूर नाम लिखियेगा।

अंत में केवल इतना कहूँगा उपन्यास मुझे काफी पसन्द आया। इसे एक बार पढ़ा जा सकता है। अगर आपने ये उपन्यास पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय से जरूर वाकिफ करवाईयेगा। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आप इसे डेलीहंट नामक एप्प में जाकर पढ़ सकते हैं। उम्मीद है ये आपका भी उतना ही मनोरंजन करेगा जितना कि इसने मेरा मनोरंजन किया। 

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

2 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. उपन्यास की कथावस्तु रोचक है। इसी कथा पर निरंजन चौधरी का 'और वह भाग गयी' तथा स्वयं पाठक जी का 'साजिश' आधारित है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सही कहा। और वह भाग गई जल्द ही पढूँगा।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल