नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

धब्बा - सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग :
उपन्यास १९ फरबरी से २० फरबरी के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : ३३८
प्रकाशक - राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज : सुनील #११९


पहला वाक्य :
शाम साढ़े आठ बजे के करीब सुनील यूथ क्लब पहुँचा।


जब सुनील यूथ क्लब पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यूथ क्लब में एक मुशायरा चल रहा था। रमाकांत से सुनील ने जाना कि मुशायरे का संयोजक एक प्रकाश खेमका नामक शख्स था जो कि सुनील से मिलने का तलबगार था। वो एक मुसीबत में था और अपनी मुसीबत के विषय में सुनील से विचार विर्मश करना चाहता था। और इसी कारण यूथ क्लब में उसने मुशायरा करवाया था।
प्रकश खेमका एक 'सरकता-आँचल '  नामक पत्रिका का प्रकाशक था। पत्रिका में सेमी-पोर्न कहानियाँ छपती थी। लेकिन इसकी कमाई का जरिया इसमें छपने वाले विज्ञापन थे जिन्हें की साथी कि तलाश वाले लोग एक फीस के तहत छपवाते थे और जवाब देने के इच्छुक लोग मैगज़ीन से कूपन काट कर उसका जवाब दे सकते थे।
प्रकाश खेमका ने सुनील को बताया कि उसके कारोबारी प्रतिद्वंदियों ने एक विज्ञापन को आधार मानकर कोर्ट में ये दर्शाने की कोशिश की थी कि खेमका लोगों से पैसे हथियाने के लिए खुद ही नकली विज्ञापन इस पत्रिका में छापता था। अब खेमका के पास इस मुसीबत से बचने के दो ही तरीके थे।    पहला ये कि वो मैगज़ीन को पूरी मार्किट से रिकॉल कर दे। जो कि उसके लिए मुमकिन नहीं था क्योंकि इससे बाकी विज्ञापन देने वाले उस पर धोखाधड़ी का केस लगा सकते थे।  या दूसरा ये कि  वो विज्ञापन देने वाले शख्स को ढूंढ के उससे विज्ञापन को सत्यापित कराये। दूसरा काम उससे बेहतर लगा था लेकिन उसमे पेंच ये था उसके पास विज्ञापन देने वाले के विषय में खेमका को कोई जानकारी नहीं हुई थी। एक क्लेरिकल मिस्टेक के तहत ऐसा हुआ था।
खेमका ने सुनील से दरख्वास्त की थी कि वो उस शख्स का पता लगाये जिसने विज्ञापन पोस्ट किया था, ताकि खेमका इस मुसीबत से निजाद पा सके।
आखिर क्या था उस विज्ञापन  में ऐसा जिसने खेमका के लिए मुसीबत खड़ी कर दी? क्या सुनील उस विज्ञापनदाता का पता लगा पायेगा?
क्या खेमका केवल इसी कारण से विज्ञापनदाता का पता जानना चाहता है या उसका मकसद कुछ और है?
क्योंकि उपन्यास में सुनील है तो सवाल और भी होंगे लेकिन अंततः सबका जवाब मिल ही जाएगा। बस आपको उपन्यास पढना होगा।

धब्बा सुनील सीरीज का ११९ उपन्यास है। सुनील के उपन्यास अगर आप पढ़ते हैं तो इसकी दो खासियत होती हैं। एक तो ये एक मर्डर मिस्ट्री होता है और दूसरा इसमें रमाकांत और सूनील के चुटीले संवाद पढने को मिलते हैं। धब्बे भी इन दो खासियतों से परिपूर्ण है। इस उपन्यास में जहाँ एक क़त्ल आपको रोमाचित करता है वहीं सुनील की सुनिलियन पुड़िया, रमाकांत और सुनील की नौक झोंक आपको आनंदित करती है।
उपन्यास मुझे बेहद पसंद आया। अगर  एक अच्छे मर्डर मिस्ट्री की आपको दरकार है तो ये उपन्यास उस पर फिट बैठेगा।

  उपन्यास आपको निम्न लिंक से प्राप्त हो सकता है :
राज कॉमिक्स
अमेज़न
या आप उपन्यास को अपने मोबाइल में डेली हंट नामक एप्प के माध्यम से भी पढ़ सकते है। उसका लिंक :
डेली हंट
पढ़िए और आपनी राय इस उपन्यास के विषय में बताना नहीं भूलियेगा।


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

3 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. 'धब्बा' बार-बार पढ़ा जा सकता है क्योंकि इसके प्रारम्भिक अध्याय में जो मुशायरे का हास्य से ओतप्रोत प्रसंग है, वह इसके रहस्य से भी अधिक मनोरंजक है । इसी कारण से मैं इस उपन्यास को दर्ज़नों बार पढ़ चुका हूँ । आपकी समीक्षा अच्छी है विकास जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया सर। आपने सही कहा: पाठक साहब के उपन्यास तो कई बार पढ़ें जाने लायक हैं।

      Delete
  2. यह उपन्यास पढ रहा हूँ।
    - गुरप्रीत सिंह
    02.03.2021

    ReplyDelete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल