नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

क्राइम क्लब - सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : ५/५
उपन्यास २२ फरबरी,२०१६  से २४ फरबरी २०१६ के बीच  पढ़ा  गया


संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : इ-बुक
प्रकाशक : न्यूज़ हंट
सीरीज : विवेक अगाशे #१



पहला वाक्य :
वो क्राइम क्लब की बड़ी महत्वपूर्ण मीटिंग थी।

दुष्यंत परमार को दिल्ली के लार्ड बायरन के नाम से जाना  जाता  था। वो एक कवि और नाटककार था। इसके इलावा उसके अन्दर ऐसे खासियत थी  कि औरतें उसके प्रति आकर्षित हो जाती थी। और उसे भी इस बात से कोई दिक्कत नहीं होती थी। ऐसे में उसके कई दुश्मन होना लाजमी था।

उसके नाम एक शिवालिक क्लब, जिसमे वो अक्सर जाया करता था, एक चोकलेट का डिब्बा आता है। डब्बे के साथ आए ख़त के मुताबिक वो एक कम्पनी द्वारा पब्लिसिटी के लिये भेजा गया डिब्बा था। इस पब्लिसिटी से वो नाराज़ हो जाता है और डिब्बे को फेंकने वाला होता है जब क्लब के दुसरे मेम्बर  मुकेश निगम, जो कि उस वक्त दुष्यंत के बगल में भी बैठा था, उससे वो चोकलेट का डिब्बा ले लेता है। मुकेश निगम उस डिब्बे को अपनी पत्नी को उस शर्त के एवज में देता है जिसे वो हार गया था।

उसके बाद ऐसा होता है कि मुकेश कि दुनिया उजड़ जाती है। मुकेश अपनी बीवी के साथ चोकलेट खाता है लेकिन अपनी बीवी से कम खाता है। इसका परिणाम होता ये होता है कि मुकेश की तो खाली तबियत बिगडती है लेकिन उसकी बीवी अंजना निगम की मौत हो जाती है।

पुलिस को जब ये बात पता चलती है तो उसे ये साफ़ तौर पर हत्या का मामला प्रतीत होता है। किसने भेजे थे दुष्यंत परमार को वो चोकलेट?पुलिस जब इस मामले की पेचीदगियों में उलझ जाती है तो वो इस केस को क्राइम क्लब के समक्ष प्रस्तुत करती है। क्राइम क्लब ऐसे लोगों का क्लब है जो कि अपराध विज्ञान में रूचि रखते हैं। इसके छः सदस्य हैं :

विवेक अगाशे - एक प्राइवेट  डिटेक्टिव  और  क्राइम  क्लब के  सभापति
रुचिका केजरीवाल - भारत टाइम्स नामक राष्ट्रीय दैनिक की प्रसिद्द क्राइम रिपोर्टर
लौंगमल दासानी - फौजदारी के मुकद्दमों के नामी वकील
छाया प्रजापति : मैजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास
अभिजीत घोष - चार्टर्ड अकाउंटेंट
अशोक प्रभाकर - जासूसी उपन्यासकार  वास्तविक नाम  सुशील जैन

क्या वो इस केस को सुलझा पायेंगे ? क्या वो पता लगा पाएंगे इन जहरीली चॉकोलेटों का राज ?

ये जानने के लिये तो आपको इस उपन्यास को पढ़ना पड़ेगा।

क्राइम क्लब विवेक अगाशे सीरीज का पहला उपन्यास है।  इससे पहले मैं इस सीरीज का एक और बेहतरीन उपन्यास धोखा पढ़ चुका हूँ।  उपन्यास मुझे बहुत पसन्द आया। ये उपन्यास बाकी डिटेक्टिव फिक्शन से अलग  था। ज्यादातर उपन्यासों में एक ही डिटेक्टिव होता है और आपको एक ही थ्योरी पढने को मिलती है लेकिन इसमें क्राइम क्लब के छःसदस्य इस अपराध के लिये अलग अलग थ्योरी देते हैं। थ्योरी सुनने में शुरुआत में तो बेहतरीन लगती है लेकिन फिर सदस्य ही एक दुसरे की थ्योरी में पेंच डालते हैं और अंत में सही थ्योरी तक पहुँचते हैं। चूँकि आपको अलग अलग थ्योरी मिलती है तो उपन्यास में रूचि अंत तक बनी रहती है और अलग अलग खोजबीन के तरीकों से भी पाठक रूबरू होता है।

उपन्यास की एक खासियत यह भी है कि इसमें सुरेन्द्र मोहन पाठक ने एक किरदार द्वारा अपने ऊपर एक व्यंग्य भी करवाया है जिसे पढ़ते हुए बरबस ही आपकी हँसी छूट जाती है। 

अगर आप डिटेक्टिव फिक्शन पढने के शौक़ीन हैं तो इस उपन्यास को पढना एक ऐसा अनुभव है जिसे आपको जरूर लेना चाहिए। मुझे तो ये उपन्यास बहुत पसन्द आया और मुझे उम्मीद है आप भी अगर इसे पढेंगे तो निराश नहीं होंगे।

नोट: उपन्यास का काफी हिस्सा अन्थोनी बर्कली के उपन्यास द पाइजनड चोकोलेट केस से प्रेरित है 

उपन्यास आप डेलीहंट एप्प के माध्यम से पढ़ सकते हैं।
डेली हंट







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