नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बनारसी बाई - बिमल मित्र

रेटिंग : ३.५/५
उपन्यास ३ अक्टूबर २०१५ से   ८ अक्टूबर के  बीच पढ़ा गया


संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन
पृष्ठ संख्या : १६०




बनारसी बाई में बिमल मित्र की तीन लम्बी कहानियों को संकलित किया गया है।  ये तीनों  कहानियाँ निम्न हैं :




१) बनारसी बाई  ४/५
पहला वाक्य :
संध्या उतर रही थी, मैं विडन स्क्वायर की बगल से जा रहा था। 

अनूपपुर बिलासपुर और कटनी के बीच का एक छोटा सा स्टेशन हुआ करता था। यहाँ प्रेमलानी साहब का कारखाना हुआ करता था जिसमे अनूपपुर के कई लोग कार्यरत थे । इनमे एक मुख़र्जी बाबू थे जो इस कारखाने में ड्राफ्ट्समैन के तौर पर काम करते थे । मुख़र्जी बाबू काफी मिलनसार आदमी थे और हफ्ते में एक दिन लोगों के कटनी से सामान ला जाया करते थे । इतनी ही मिलनसार उनकी पत्नी मिसेज मुख़र्जी थी। जितनी मीठा वो बोलती थी उतना अच्छा वो खाना बनाती थी और उससे अच्छा उनका चरित्र था । मोहल्ले में कोई भी ऐसा नहीं था जो मिसेज मुख़र्जी की इज्जत न करता हो । वो एक आदर्श गृहणी थी। 
लेकिन फिर एक दिन मुख़र्जी दंपत्ति अचानक मोहल्ले से गायब हो गए। उन्होंने अपने जाने के विषय में किसी को कुछ नहीं बताया। वो अपना सामान लेकर भी नहीं गए थे । 
ऐसा क्या हुआ था ? लोग जानना चाहते थे। लेकिन न मुख़र्जी दम्पत्ति मिले और न कारण का पता चला। ऐसे में कई साल बाद मोहल्ले में रहने वाले डॉक्टर के छोटे भाई को जब मिस्टर मुख़र्जी वीडन स्क्वायर में दिखे तो उन्होने उन्हें रोका और फिर पलायन जानने की कोशिश की। क्या वो इसका कारण जान पाये ? कौन थी ये बनारसी बाई जिसका नाम सुनते ही मुख़र्जी दंपत्ति इतना घबरा गए थे?
बनारसी बाई मुझे इस संग्रह की सबसे सशक्त कहानी लगी। समाज के चरित्र को काफी अच्छे ढंग से दर्शाती थी। कुछ पेशे ऐसे हैं जिन्हें समाज में अच्छी नजरों से देखा जाता और उनसे जुड़े व्यक्तियों से घृणा की जाती है। भले ही ये समाज है जो ऐसे पेशों का निर्माण करता है। ऐसे में उनके सभी गुणों को नज़रअंदाज करके इसी एक पेशे के वजह से उनसे घृणा करने लगते हैं । हम उनको अपने से ऊँचा समझने लगते हैं चाहे फिर बाकी मापदंडों में वो हमसे कई अच्छे हों । समाज के इसी रूप को बिमल मित्र जी ने बड़ी खूबसूरती से दर्शाया है।
एक अच्छी कहानी जिसे आपको पढ़ना चाहिए। 




२) नायक - नायिका ३/५
पहला वाक्य :
चौड़ी सड़क थी, जिसके एक ओर टीन की छत का एक कच्चा मकान था।

डॉक्टर तिनकड़ीभंज कभी होमियोपैथी के डॉक्टर हुआ करते थे और देवघर में रहते थे ।  लेकिन उससे भी पहले वो एक दुकान में बैठकर हिसाब किताब देखते थे और भवानीपुर में रहते थे । फिर एक गद्दी में बैठने वाला आदमी कैसे होमियोपैथी का डॉक्टर बन गया?
उनके अनुसार उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही मरीज को ठीक किया और उनके अनुसार फिर उन्हें किसी और को ठीक करने की ज़रुरत ही  नहीं पड़ी और उन्होंने कोशिश की भी तो वो सफल नहीं हुए।
क्या ऐसा संभव है कि एक मरीज को ठीक करने से आदमी के ऐसे ठाट बाट आ जायें जैसे तिनकड़ीभंज जी के थे ?और अगर है तो ऐसा कैसे हुआ? क्या थी तिनकड़ीभंज की कहानी ?
उत्सुक हैं आप जानने के लिए। तो आपको जाना पड़ेगा उस जगह जहाँ कुछ लोग मिलकर गप्पे बजी कर रहे थे।  इनमे निर्मल लाहिड़ी, समीर डे, चित्त सरकार और इस कहानी को बयान करने वाले भी मौजूद थे।  जब निर्मल लाहिड़ी, समीर डे और चित्त सरकार के बीच बहस बढ़नी शुरू हो गयी तो इस कहानी को सुनाया गया क्योंकि वाचक के अनुसार 'कहानी बहस की मृत्यु होती है '।आप भी उन्ही की जबानी सुनियेगा।
कहानी भाग्य और उसकी महिमा के ऊपर है। और कैसे भाग्य ने तिनकड़ीभंज को डॉक्टर तिनकड़ीभंज और फिर गरीबी से अमीरी की चौखट तक पहुँचाया।
कहानी काफी रोचक है।  तिनकड़ीभंज जी की कहानी के मेरे भीतर उत्त्सुकता को बनाये रखा और कहानी पढने में मज़ा भी आया।


३)एक और तरह ३/५
पहला वाक्य :
कुछ वर्ष सरकारी नौकरी की थी मैंने।

'एक और तरह' कहानी में बयान करने वाले सज्जन एक सरकारी मुलाजिम थे। उन्हें रिश्वतखोरी में लिप्त लोगों को पकड़ने के लिए रखा गया था।  अपने उसी वक़्त के दौरान हुए अनुभवों में से एक अनुभव को वो पाठक से साझा करते हैं।  वो जो कहानी बयान करते हैं वो है समर विश्वास की जो की ऐसे घराने से ताल्लुक रखता था जो कभी बहुत अमीर हुआ करता था लेकिन अब उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
समर ने भी रिश्वत ली थी।  क्यों ली थी उसने रिश्वत? इस बात को  तो इस कहानी को वर्णन करने वाले ही सही तरीके से बता पायेंगे।

कहानी मुझे अच्छी लगी।  कहानी पठनीय है और पात्र जीवंत हैं।

संग्रह की तीनो कहानियाँ पठनीय है और पाठक को बोर नहीं करती हैं। मैं अपनी बात करूँ तो इस संग्रह में बनारसी बाई मुझे काफी पसंद आई। कहानियों को एक बार पढ़ा जा सकता है।

किताब का लिंक :
बनारसी बाई


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