नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

समरसिद्धा - संदीप नैयर

                                                                 
रेटिंग : ३.५/५
उपन्यास ख़त्म करने की दिनाँक  : २ नवम्बर, २०१४

संस्करण विवरण :

फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या :२४०
प्रकाशक : पेंगुइन इंडिया



प्रथम वाक्य :
'दामोदर.... '
युद्धभूमि के प्रचंड शोर, धनुषों की टंकार और घोड़ों के टापुओं के तीव्र स्वरों के बीच भी यह चीख शत्वरी के कानों में गूंज उठी।


समर्सिद्धा संदीप नैयर जी कि पहली रचना है ।ये उपन्यास आठवीं शताब्दी ईसापूर्व के कालखंड में रचा गया है ।शत्वरी एक ब्राह्मण कन्या थी । उसका जीवन एक सुगम संगीत की तरह मधुर था। पति का प्यार और संगीत की धुनें यही उसका जीवन था और इसी में वो खुश थी । लेकिन उसके जीवन में अमोदिनी नाम कि गणिका एक ग्रहण के भाँती अवतरित होती है और हालत ऐसे हो जाते हैं कि शत्वरी को ब्राह्मण से चंडाल घोषित कर लिया जाता है । वो अब बदले कि आग में सुलग रही है । वही दूसरी ओर दक्षिण कौसल के राजा रुद्रसेन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते एक छोटे राज मेकाल के तराई के कुछ गाँवों को अपने कब्जे में ले लेते हैं । मेकल के राजा नील अपने इलाकों को रुद्रसेन के कब्जे से छुड़ाना चाहतें हैं ।क्या वो ऐसा करने में कामयाब हो पायेंगे?आर्य समाज जहाँ वर्णव्यवस्था ऐसी हो चुकी है कि शूद्रों को दमन के सिवा कुछ नहीं मिलता , उसी समाज में शुद्र अब इस अन्याय के खिलाफ लड़ने को अमादा हैं । वो शत्वरी के नेतृत्व में दक्षिण कौसल के राज्य में विद्रोह करने को तैयार हैं । क्या वो अपनी कोशिश में सफल होंगे? क्या होगा इन विभिन्न समारों का नतीजा ??कौन जीतेगा इनमे??ये जानने के लिए आपको उपन्यास पढ़ना पड़ेगा।

उपन्यास को मैं चार स्टार देना चाहता था लेकिन कुछ वजहों से न दे पाया । उपन्यास मुझे भाया और इसकी भाषा कि खूबसूरती ने मेरे मन को मोह लिया । अलंकार और उपमाओं के ऐसे प्रयोग मैंने पहली बार पढ़ा और मैं लेखक को बधाई देना चाहूँगा। लेकिन, फिर कमी कहाँ रह गयी?  उपन्यास की शुरुआत बेहतरीन थी। शत्वरी और दामोदर के जीवन की कहानी ,दक्षिण कौसल और मैकल के बीच का विवाद को संदीप जी ने बेहद खूबसूरती से दिखाया है । वर्णव्यवस्था और कैसे समाज के रसूखदार लोग धर्म की परिभाषा अपने हित में ढालने का प्रयत्न करते हैं इसका भी अच्छा विवरण है ।  लेकिन इसका अंत मुझे ऐसा लगा कि जैसे इसे  जल्दबाजी में निपटा दिया गया हो । जहाँ शुरुआती  कहानी असलियत के करीब लगती है वहीँ दूसरी और इसका अंत एक ख्वाब जैसा प्रतीत होता है । सब कुछ अच्छा हो जाता है और सभी बाकी ज़िन्दगी हँसी ख़ुशी से बसर करते हैं । खैर,ऐसा मुझे लगा ।  आपको ये पुस्तक क्यूँ पढनी चाहिए?? इसका शुरुआती भाग और इसकी भाषा के लिए इस पुस्तक को ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए।

पुस्तक के कुछ अंश :

सुर और सम्बन्ध दोनों ही विचित्र होते हैं । जितनी कठिनाई से सधते हैं , उतनी ही सरलता से फिसल जाते हैं ।    

'रस का अर्थ है 'सार' या 'सत्व' ,' आचार्य जी ने रस की परिभाषा देते हुए कहा ,'जिस प्रकार किसी फल या फूल का सत्व उनके रस में निचोड़ा जा सकता है उसी तरह जीवन का सार भी कुछ रसों में समाया होता है । जीवन को गति देने वाली इच्छाएं और भावनायें इन्हीं रसों में घुल कर बहती हैं । बिना रसों के जीवन निरर्थक है '। 

आप इस भ्रम में हैं कि अस्तित्व की रक्षा शक्ति से की जाती है, अस्तित्व की रक्षा शक्ति से नहीं विवेक से की जाती है, शक्तिशाली मिट जाते हैं पर विवेकशील जीवित रहते हैं । 

आप समरसिद्धा को निम्न लिंकों के ज़रिये मँगा सकते हैं :-
फ्लिपकार्ट
अमेज़न


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

2 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. संदीप नैयर जी के उपन्यास समरसिद्धा की आपने अच्छी समीक्षा लिखी है।
    हाँ, बहुत बार ऐसा होता है की कहानी जिस रोचकता से आरम्भ होती है उसी रोचकता से समापन नहीं हो पाती।
    -मुझे कालखण्ड विशेष की ऐसी कहानियाँ बहुत अच्छी लगती है। उपन्यास पढने की इच्छा जागी है।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. पढ़कर कैसी लगी? यह जरूर बताइयेगा।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल