finished On:5th of March 2014
Rating: 4.5/5
पहला पुस्तकालय संस्करण :१९७१
पृष्ट संख्या :२०७
मैं तो चाहूँगा की हर व्यक्ति इसे पढ़े। और अंत में लेखिका ही के शब्दों को यहाँ दोहराना चाहूँगा-
' जीते - जागते बंटी का तिल-तिल करके समाज की एक बेनाम इकाई-भर बनते चले जाना यदि पाठक को सिर्फ अश्रुविगलित ही करता है तो में समझूँगी की यह पत्र सही पतों पर नही पहूँचा है।'
आपका बंटी का होमशॉप १८ लिंक
Rating: 4.5/5
संस्करण विवरण :
प्रकाशक: राधाकृष्ण पेपरबैक्स पहला पुस्तकालय संस्करण :१९७१
पृष्ट संख्या :२०७
प्रथम पंक्ति :
ममी ड्रेसिंग टेबुल के सामने बैठी तैयार हो रही हैं ।
अजय और शकुन आपसी तनाव के कारण अलग होने का फैसला लेते हैं।
पर उनकी जिंदगी में केवल वो दोनों ही नहीं अपितु उनका बेटा बंटी भी है। इस
अलगाव का उस पर क्या असर पड़ता है और वो कैसे अपने जीवन में आने वाले
बदलावों से जूझता है, यही इस उपन्यास का सब्जेक्ट है। अलगाव के बाद बंटी को
ना केवल अपने माता पिता की दूरी से जूझना पड़ता है लेकिन उसे उनकी ज़िन्दगी
में आये नए लोगों के साथ भी एडजस्ट करना पड़ता है। इन सब बदलावों का बंटी के
व्यवहार और उसका कैसा मनोविज्ञानिक असर उस पर पड़ता है, ये मन्नू
भंडारी जी ने इसमें बखूबी दर्शाया है।
मन्नू जी ने इस उपन्यास को बड़ी खूबसूरती से लिखा है। यह
उपन्यास १९७०(1970) में लिखा गया था ,यह जान कर मुझे काफी हैरानी हुई। यह
उपन्यास आज के वक़्त में भी उतना ही सटीक बैठता है जैसे उस वक़्त बैठता था।
सही मायने में ये समय के दायरों को जीतने वाला कालजयी उपन्यास है।
मन्नू जी ने बंटी और शकुन के रिश्ते को बखूबी दिखाया है । हर
किसी को इस उपन्यास को पढ़ना चाहिए। मुझे काफी बातें इस उपन्यास में अच्छी
लगी की मन्नू जी ने अजय और शकुन के नए स्पॉउसेस को काफी सप्पोर्टिव और
अंडरस्टैंडिंग दिखाया है।
कुछ बातें मुझे पात्रों के व्यवाहर में खलीं-
जैसे काफी महत्त्वपूर्ण निर्णय के विषय में बंटी को कुछ बताया ही नहीं जाता
था और एक तरीके से उस पर वो बात थोपी सी जाती थी। अगर ऐसा न होता तो शायद
कहानी का अंत कुछ और होता। इसी कारण मैंने इसे आधा स्टार कम दिया रेटिंग
में। क्यूंकि अजय और शकुन काफी पढ़े लिखे लोग थे, शकुन प्रिंसिपल थीं और अजय डिविजनल मेनेजर तो उनसे ऐसी अपरिपक्वता को डाइजेस्ट करना थोडा मुश्किल
होता है। बस यही बात मुझे खली।
कभी कभी हम ऐसी चीज़ पड़तें है जो दिल के ऐसे कोने छू जाती हैं और सोचने में मजबूर कर देती हैं। उन्ही रचनाओं में से ये एक ऐसी रचना है।
कभी कभी हम ऐसी चीज़ पड़तें है जो दिल के ऐसे कोने छू जाती हैं और सोचने में मजबूर कर देती हैं। उन्ही रचनाओं में से ये एक ऐसी रचना है।
मैं तो चाहूँगा की हर व्यक्ति इसे पढ़े। और अंत में लेखिका ही के शब्दों को यहाँ दोहराना चाहूँगा-
' जीते - जागते बंटी का तिल-तिल करके समाज की एक बेनाम इकाई-भर बनते चले जाना यदि पाठक को सिर्फ अश्रुविगलित ही करता है तो में समझूँगी की यह पत्र सही पतों पर नही पहूँचा है।'
आप इस उपन्यास को निम्न लिंको से प्राप्त कर सकते हैं -
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glad to read it as it somewhere dipicts my story.........
ReplyDeletei am glad to read this as it somewhere depits my story
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